धीरज, देवल संवाददाता, आजमगढ़। मुस्लिम समुदाय द्वारा बड़े उत्साह के साथ जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी (बारावफात) का त्योहार मनाया जा रहा है। शहर में पूरे उत्साह के साथ लोग मनाते दिखे। जामा मस्जिद से लेकर अन्य मस्जिदों में सजावट से लेकर आसपास झंडे लगाए गए। वहीं एहतियात के तौर पर हर तरफ पुलिस फोर्स लगी हुई नजर आई। इस में लगभग तीस अंजुमनें जुलूस में अपनी हिस्सेदारी की जिनका जगह-जगह उनका स्वागत भी किया गया। सभी अंजुमनें निस्वां कालेज के पास एकत्र होंगी और नात पढ़ते हुए पहाड़पुर, शिब्ली चौराहा, तकिया, कोट, टेढ़िया मस्जिद, बाजबहादुर, किला कोट, दलालघाट, पुरानी कोतवाली होते हुए मुख्य चौक पहुंचेंगी। वहां सलाम पढ़ने और अमन-चौन की दुआ के बाद पुरानी सब्जीमंडी, कटरा, बदरका, पांडेय बाजार होते हुए जामा मस्जिद पहुंचेंगी। वहां रात में तकरीर होगी। इस दौरान अंजुमनों के सदस्यों की ओर से भी सुरक्षा के प्रबंध किए जाएंगे। लोगों का कहना था कि हर साल ये त्योहार रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन मनाया जाता है। इस दिन पैगंबर मुहम्मद का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को खासतौर पर मनाया जाता है और इसे ईदों की ईद भी कहा जाता है। पैगंबर को अल्लाह का दूत और इस्लाम के मार्गदर्शक के तौर पर जाना जाता है। उनकी यौम-ए-पैदाइश को मुस्लिम धर्म में एक जश्न की तरह मनाया जाता है। इस्लाम धर्म में ऐसा माना जाता है कि अल्लाह समय-समय पर अपने दूत भेजते रहते हैं जो जनता को सही मार्ग पर चलने का उपदेश देते हैं। वे अल्लाह का संदेश, आवाम तक पहुंचाने के लिए इस धरती पर जन्म लेते हैं. इन्हें नबी और पैगंबर के नाम से जाना जाता है। हजरत मुहम्मद की बात करें तो उन्हें अल्लाह के आखरी दूत के तौर पर जाना जाता है। उनका जन्म साउदी अरब के मक्का में हुआ था मुहम्मद ने अपने जीवन में काफी संघर्ष झेले और समाज सुधारने के अपने सफर में उन्होंने कई सारे उतार-चढ़ाव का सामना किया।