देवल संवाददाता, गोरखपुर ।नेपाल, बिहार, ओडिशा और झारखंड तक फैला गांजा तस्करी का नेटवर्क अब गोरखपुर को एक बड़े ट्रांजिट हब में बदल चुका है। पिछले दो वर्षों में पुलिस और नारकोटिक्स विभाग की ओर से की गई कार्रवाई में कई क्विंटल गांजे की बरामदगी ने पूरे अवैध धंधे की परतें खोल दी हैं। यह नेटवर्क नेपाल के तराई क्षेत्र, बिहार के सीमावर्ती इलाकों, झारखंड के जंगलों और यूपी के ग्रामीण इलाकों में गिरोहों के संगठित गठजोड़ से तैयार हुआ है। लगातार मामला सामने आने के बाद नारकोटिक्स विभाग ने भी सख्ती बढ़ा दी है।
सूत्रों के अनुसार, गांजा तस्करी का जाल सबसे पहले नेपाल सीमा पर सक्रिय छोटे गिरोहों के साथ शुरू हुआ। नेपाल में कई ऐसे इलाके हैं जहां स्थानीय लोगों के माध्यम से अवैध सप्लाई चैन तैयार की गई। भारत-नेपाल की खुली सीमा तस्करों के लिए सबसे बड़ा हथियार साबित हुई। इसके बाद इस नेटवर्क ने बिहार और झारखंड तक विस्तार लिया।
झारखंड के घने जंगल, जहां नक्सल गतिविधियों की आड़ में वर्षों से अवैध खेती होती रही, वहीं बिहार के गया-औरंगाबाद-सासाराम मार्ग तस्करों के लिए सुरक्षित ट्रांजिट कॉरिडोर बन गए। इसी चेन का अंतिम और सबसे उपयोगी पड़ाव गोरखपुर बना, जहां से माल दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और पश्चिम यूपी तक भेजा जाने लगा।
इन रूट पर सक्रिय हैं तस्कर
सूत्रों के अनुसार, नेपाल-गोरखपुर : सोनौली, मुंडेरवा, सिकटा, महाराजगंज-बर्डपुर बॉर्डर से सबसे ज्यादा सप्लाई आती है। यहां से माल सहजनवां, बांसगांव, खजनी व बड़हलगंज क्षेत्र के रास्ते शहर तक पहुंचता है। वहीं ओडिशा-झारखंड-बिहार रूट के लिए तस्कर ओडिशा के मलकानगिरि-कोरापुट क्षेत्रों में उगाए जाने वाले गांजे को पहले झारखंड के चतरा खूंटी तक लाया जाता है।
वहां से बिहार के ट्रकों और निजी गाड़ियों के जरिए यूपी की ओर सप्लाई बढ़ाई जाती है। ऐसे ही पूर्वोत्तर रूट पर मणिपुर-त्रिपुरा-आसाम की ओर से आने वाला माल गोरखपुर होकर दिल्ली-एनसीआर तक जाता है। इस रूट पर महंगे और उच्च क्वालिटी वाले गांजे की सप्लाई अधिक होती है।
हर रुकावट के साथ नई तकनीक
तस्कर पुलिस से बचने के लिए कई तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। इसमें वाहनों के सीक्रेट चेंबर, पिकअप, ट्रक, स्कॉर्पियो व लग्जरी कारों में नीचे फॉल्स फ्लोर और अंदर छिपे कैविटी का प्रयोग करते हैं। हर जिले में फर्जी नंबर प्लेट व गाड़ी बदलकर खेप को आगे बढ़ाते हैं। ज्यादातर लोग तस्कर महिलाओं और किशोरों का इस्तेमाल करते हैं।
जिससे संदेह कम होने के कारण उन्हें कैरियर बनाया जाता है। उन्हें 1-2 किलो की अलग-अलग छोटी खेप दी जाती हैं ताकि पकड़े जाने पर नुकसान कम हो। गोरखपुर शहर में इस नेटवर्क की जड़ें फैली हैं। रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, दिलावरनगर, बांसगांव रोड, बशारतपुर, शाहपुर और ग्रामीण इलाकों में लोकल एजेंट सक्रिय रहते हैं, जो माल को रिसीव कर आगे भेजते हैं।
भौगोलिक लोकेशन का फायदा उठा कर शहर को बनाया केंद्र
गोरखपुर नेपाल से सिर्फ 65-70 किलोमीटर दूर है और यहां से दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, लखनऊ व कानपुर की सीधी सड़कें जुड़ी हैं। रेलवे का बड़ा जंक्शन होने से पार्सल व बोगियों के जरिये माल भेजना आसान हो जाता है। इसके अलावा यहां लोकल स्तर पर सक्रिय छोटे तस्कर, बेरोजगार युवाओं को लालच देकर नेटवर्क को मजबूत करते हैं, जिससे शहर बड़े गिरोहों का डेटा और डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर बन जाता है।
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) व यूपी पुलिस ने पिछले एक साल में कई इंटर-स्टेट ऑपरेशन चलाए हैं। नेपाल बॉर्डर पर सीमा सुरक्षा, स्थानीय पुलिस और एनसीबी का संयुक्त चेकिंग अभियान बढ़ाया गया है। बिहार-झारखंड के रूट पर इंटर-स्टेट इंटेलिजेंस शेयरिंग बढ़ाई गई है।
इसके साथ ही गोरखपुर शहर में लोकल नेटवर्क की पहचान, पकड़े गए तस्करों के मोबाइल डेटा व पैसों के डिजिटल ट्रेल के जरिये की जा रही है। बड़े गिरोहों तक पहुंचने के लिए मनी ट्रांसफर और बैंकिंग रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं:
