देवल संवाददाता, महाराजा सुहेल देव विश्वविद्यालय, आजमगढ़ में "विकसित उत्तर प्रदेश @ 2047" के तहत 'हायर एजुकेशन की फाइनेंसिंग' विषय पर एक महत्वपूर्ण कॉन्क्लेव का आयोजन हुआ, जिसका उद्घाटन माननीय कुलपति द्वारा किया गया। प्रो संजीव कुमार ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य उच्च शिक्षा के वित्तीय ढांचे को मजबूत करने के लिए सहयोगात्मक मॉडल, नीतिगत सुझाव और व्यवहारिक विकल्पोंकी तलाश है। आज की उच्च शिक्षा की बदलती आवश्यकताओं, भविष्य की फंडिंग चुनौतियों और नीतिगत सुधारों पर विचार के लिए ऐसे आयोजन की बहुत ही जरूरत है।
कॉन्क्लेव में विशेषज्ञ सत्र आयोजित हुए, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षाविद् प्रो. उमेश प्रताप सिंह ने उच्च शिक्षा के बदलते वित्तीय परिदृश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। अपने संबोधन में प्रो. सिंह ने उच्च शिक्षा क्षेत्र के समक्ष मौजूद चुनौतियों- संसाधनों की कमी, बदलती आर्थिक ज़रूरतें, संस्थागत जवाबदेही, और वैश्विक मानकों से प्रतिस्पर्धा - पर गहन चर्चा की। उन्होंने कहा कि "भविष्य की शिक्षा केवल अकादमिक उत्कृष्टता पर नहीं, बल्कि सुदृढ़ वित्तीय संरचना और स्थायी नीति-निर्माण पर भी निर्भर करेगी। प्रो सिंह ने विकसित उत्तर प्रदेश @ 2047 के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए संस्थानों के लिए सहयोगात्मक फंडिंग मॉडल, नवोन्मेषी वित्तीय स्रोत, तथा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप जैसे विकल्पों पर जोर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि विश्वविद्यालयों को भविष्य की शिक्षा जरूरतों के लिए लंबी अवधि के फाइनेंशियल
प्लानिंग और प्रभावी संसाधन प्रबंधन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
अकादमिक कॉन्क्लेव में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ही प्रो. सुनील कान्त मिश्रा ने 'हायर एजुकेशन की फाइनेंसिंग' विषय पर विस्तृत और शोध-आधारित व्याख्यान में कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए वित्तपोषण केवल बजट का सवाल नहीं बल्कि समग्र संस्थागत विकास, गुणवत्ता संवर्धन और दीर्घकालिक रणनीति से जुड़ा हुआ मुद्दा है। उन्होंने बताया कि 2047 के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालयों को वित्तीय विविधीकरण, नवोन्मेषी फंडिंग मॉडल, तथा शोध केंद्रित आर्थिक ढांचे को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। प्रो. मिश्रा ने शिक्षा क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन, छात्र संख्या में वृद्धि, तकनीकी संसाधनों की मांग, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा जैसे मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत के उभरते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में उच्च शिक्षा को "सस्टेनेबल फाइनेंसिंग" के बिना नए आयामों तक पहुँचाना संभव नहीं होगा। उन्होंने भविष्य की संभावनाओं पर बात करते हुए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप, क्राउड फंडिंग, पूर्व छात्रों (Alumni) से सहयोग, और कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी जैसे विकल्पों को भी प्रभावी बताया। प्रो. मिश्रा ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालयों को फाइनेंशियल प्लानिंग, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को संस्थागत संस्कृति का हिस्सा बनाना चाहिए।
व्याख्यान के बाद एक इंटरैक्टिव चर्चा और सवाल-जवाब का सत्र हुआ, जिसमें उपस्थित फैकल्टी सदस्यों ने विभिन्न पहलुओं पर अपनी जिज्ञासाएँ और सुझाव प्रस्तुत किए। कार्यक्रम मीटिंग हॉल, एडमिन ब्लॉक, प्रथम तल पर आयोजित हुआ, जिसमें सभी फैकल्टी मेम्बर उपस्थित रहे। कार्यक्रम के सफल आयोजन में टीम के सदस्यों में वैशाली सिंह, अनुराग सिंह, सूर्य प्रकाश अग्रहरि, डॉ. ऋतंभरा, डॉ. देवमणि दुबे आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस पहल को उच्च शिक्षा के विकास की दिशा में सार्थक कदम बताया।
