26/11 मुंबई हमलों के सत्रह वर्ष बाद भारत की सुरक्षा, काउंटर-टेररिज्म और तटीय निगरानी व्यवस्था पहले से कहीं अधिक मजबूत हुई है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने न केवल अपनी तटीय निगरानी, इंटेलिजेंस-शेयरिंग और विशेष प्रतिक्रिया इकाइयों की गति को उन्नत किया है, बल्कि आतंकी खतरों पर सक्रिय व निर्णायक प्रतिक्रिया देने की क्षमता भी विकसित की है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2008 की तुलना में आज पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों के वैश्विक नेटवर्क को लेकर अंतरराष्ट्रीय समझ कहीं अधिक स्पष्ट है। 'ग्लोबल ऑर्डर' के लिए लिखे एक लेख में राजनीतिक एवं सुरक्षा विश्लेषक क्रिस ब्लैकबर्न ने बताया कि मई 2025 में शुरू किया गया ऑपरेशन सिंदूर भारत की बदलती रणनीति का महत्वपूर्ण संकेतक है।
सीधी कार्रवाई में हिचक नहीं
इस ऑपरेशन ने दिखाया कि भारत अब अपनी “लक्ष्मण रेखा'' पार होने पर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े ढांचों पर सीधी कार्रवाई करने में हिचक नहीं दिखाता। ब्लैकबर्न के अनुसार, चुनौती का बड़ा हिस्सा अब भी बरकरार है, क्योंकि 26/11 के कई मुख्य साजिशकर्ता, प्रशिक्षक और विचारक पाकिस्तान में खुले तौर पर मौजूद हैं।
“ये संगठन खुद को नए नामों और ढांचों में ढाल लेते हैं, लेकिन मकसद वही रखते हैं,'' उन्होंने लिखा। रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ढुलमुल नीति पर भी सवाल उठाए गए हैं। लेख के अनुसार, दुनिया अक्सर संवाद और संलग्नता की सरल भाषा में लौट आती है, जबकि इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि ये आतंकी नेटवर्क उतनी ही जटिलता और क्षमता से संचालित होते हैं जितना कोई भी जिम्मेदार राष्ट्र अस्वीकार्य मानता है।
रिपोर्ट बताती है कि 26/11 की बरसी हर साल केवल जनहानि पर नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा रणनीति में आए मूलभूत परिवर्तन पर भी चिंतन का अवसर देती है। मुंबई को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वह भारत की वित्तीय शक्ति, फिल्मी प्रतिष्ठा और बहुसांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। और हमले की साजिश पाकिस्तान में बैठकर लश्कर-ए-तैयबा ने रची थी।
