देवल संवाददाता, मऊ। बापू आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल में नवप्रवेशित बीएएमएस के छात्रों के पन्द्रह दिवसीय ट्रांसिशनल क्युरीकुलम (आयुर्प्रवेशिका-2025-26) कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ । जिसका उद्घाटन विश्व आयुर्वेद मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं आरोग्य भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) जी.एस.तोमर ने किया।कार्यक्रम का प्रारंभ भगवान धन्वंतरि के पूजन अर्चन एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।इसके बाद संस्थान के चेयरमैन डॉ मनीष राय ने अतिथियों का स्वागत किया।उसके बाद अपने उद्बोधन में डॉ तोमर ने आयुर्वेद की महत्ता एवं प्रासंगिकता विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा विधा है।विज्ञान एवं तकनीक के बढ़ते हुए कदमों ने एक ओर जहाँ नए नए अविष्कारों से जीवन को सरल एवं सहज बनाने का प्रयास किया है वहीं बदली हुई आरामतलब जीवनशैली ने अनेक नए रोगों को भी जन्म दिया है।विश्व स्वास्थ्य संगठन का ध्यान आज संक्रामक रोगों से हटकर इन्हीं जीवनशैली जन्य रोगों की तरफ आकृष्ट हो रहा है। इनके बचाव एवं उपचार में मात्र आयुर्वेद ही सक्षम एवं सर्वश्रेष्ठ विधा है।यही कारण है कि आयुर्वेद आज और अधिक प्रासंगिक एवं प्रभावी विधा के रूप में पुनर्स्थापित हो रहा है।आयुर्वेदीय जीवनशैली स्वस्थ भारत की आधारशिला है।उन्होंने कहा हज़ारों वर्ष पूर्व महर्षियों ने अपनी तपो साधना से जिस जीवनशैली का वर्णन किया है वह आज के परिदृश्य में भी अत्यंत व्यावहारिक,वैज्ञानिक एवं लाभकारी है।आहार,विहार एवं आचार को स्वस्थ रहने का मूलमंत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि पोषण की दृष्टि से कहाँ,कब,कितना और कैसे खाया जाए यह जानना अत्यंत आवश्यक है।जहाँ निवास करते हैं उसके सौ किलोमीटर की परिधि में मिलने वाले अन्नपान ही हमारे लिए हितकर हैं । मिलेट्स के महत्व को बताते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि पेट सम्बन्धी रोगों के साथ-साथ अनेक जीवनशैली एवं अनूर्जता जन्य रोग हमारे इस पारम्परिक अनाज के सेवन से रोके जा सकते हैं।यह प्रसन्नता का विषय है कि आज विश्व आयुर्वेदीय औषधियों के साथ-साथ इसकी जीवनशैली की ओर आकृष्ट हो रहा है।अत: यह आवश्यक है कि हम महर्षियों की इस अमूल्य ज्ञान परम्परा को अपनी जीवनशैली का अंग बनाएँ।डॉ तोमर ने ज़ोर देकर कहा कि आयुर्वेदीय जीवनशैली अपनाकर हम वर्तमान स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।जहाँ तक चिकित्सा का प्रश्न है,जीर्ण एवं असाध्य रोगों के लिए आयुर्वेद संजीवनी है । मधुमेह के रोगियों को यह विधा घातक उपद्रवों से बचाती है।लिवर डिसीजेज की चिकित्सा में इसका कोई सानी नहीं है।केंसर के रोगियों में आयुर्वेद से न केवल उनके जीवन में कुछ दिन महीने या वर्ष जोड़े जा सकते हैं अपितु इससे उनके जीवन की गुणवत्ता में अभूतपूर्व सुधार भी होता है।इसके अलावा आयुर्वेद से इन रोगियों की चिकित्सा में प्रयुक्त कीमोथेरेपी एवं रेडिएशन थेरेपी से उत्पन्न घातक दुष्प्रभावों को भी न्यूनतम किया जा सकता है।विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ अवनीश पाण्डेय ने नवप्रवेशित विद्यार्थियों को बताया कि बीएएमएस के बाद कैरियर की अपार संभावनाएं हैं।आयुर्वेद चिकित्सक आज देश भर में पंचकर्म एवं वेलनेस सेंटर,क्षार सूत्र,मर्म चिकित्सा के साथ एकेडमिक एवं रिसर्च,फार्मासीयूटिकल, हेल्थ टूरिज्म में सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।आयुर्वेद रुपी इस विरासत को संरक्षित करते हुए नई पीढ़ी को आगे बढ़ना है।अंत में इस ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायी उद्बोधन को विद्यार्थियों द्वारा सराहा गया।कार्यक्रम का संचालन डॉ संजय श्रीवास्तव ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्था के प्राचार्य डॉ मनोज कुमार कौशल ने किया।कार्यक्रम जिला पंचायत अध्यक्ष मनोज कुमार राय,बड़ी संख्या में छात्र छात्राओं के साथ महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक डॉ हरिश्चंद्र कुशवाहा,डॉ श्रुति अग्रवाल,डॉ प्रीती सिंह,डॉ गरिमा,डॉ सुरेश यादव,प्रशासनिक अधिकारी आशुतोष सिंह,क्षेत्रीय आयुर्वेद यूनानी अधिकारी डॉ सत्येन्द्र कुमार साहू डॉ संजय श्रीवास्तव उपस्थित रहे ।
