आमिर, देवल ब्यूरो ,जौनपुर। परीक्षा के दौरान जनपद ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के लगभग 19 जिलों में चर्चित राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सिद्दीकपुर के प्रधानाचार्य मनीष पाल संस्थान की अव्यवस्थाओं और अनियमितताओं को सुधारने के अलावा संस्थान के उपक्रम को सुदृढ़ बनाने में अपने को असक्षम मानते हैं परन्तु रसूखदारी और वर्चस्व को बनाये रखने के लिये किसी भी हद तक जाने से पीछे भी नहीं हटते हैं। यही कारण है कि संस्थान में काम करने वाले कर्मचारी भले ही सरकार के नौकर हों लेकिन इस संस्थान में कार्य करना है तो चर्चित प्रधानाचार्य मनीष पाल द्वारा स्वयं के बनाये गये नियमों का पालन करना ही होगा, अन्यथा उनके प्रकोप से आर्थिक एवं मानसिक क्षति पहुंचना तय है।
बता दें कि राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सिद्दीकपुर में भण्डारी यानी स्टोर कीपर उपदेश नारायण सिंह जनपद गाजीपुर से स्थानान्तरित होकर आये। लगभग 18 माह हो गये थे लेकिन प्रधानाचार्य के सिस्टम में सटीक नहीं बैठ पा रहे थे। ताल से ताल न मिलने से व्यक्तिगत आर्थिक क्षति को देखते हुये प्रधानाचार्य उनको लेकर गम्भीर हो गये। सूत्रों व आरोपों की मानें तो स्टोर कीपर को हटाने के लिये प्रधानाचार्य एक मजबूत कंधे के रूप में जनपद के एक विधायक का उपयोग कर बैठे। स्टोर कीपर उपदेश नारायण के प्रति द्वेष में प्रधानायार्य अपने मन मुताबिक पत्र लिखवाकर उनका स्थानान्तरण जौनपुर से लगभग 600 किलोमीटर दूर ललितपुर करवा दिये।फिलहाल विधायक जी द्वारा अपने हिसाब से लिखवाये गये पत्र अब तमाम प्रश्न को जन्म दे रहे हैं जिसका जवाब आखिर कौन देगा? विधायक अथवा प्रधानाचार्य? सवाल यहां यह उठता है कि तकनीकी एवं यांत्रिकी की जानकारी अथवा आईटीआई के अन्दर चल रहे खेल और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किये गये कार्यों की समीक्षा के लिये विधायक जी को भरपूर समय कैसे मिल गया? जानकारों की मानें तो इस प्रकार की जानकारी तभी हो सकती है जब वह औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में कार्यरत रहे हों या विभाग का कोई जिम्मेदार व्यक्ति उनको सम्बन्धित जानकारी पहुंचाये। इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि किसी जानकार/विभाग से सम्बन्धित द्वारा बनवाये गये पत्र को विधायक जी के पैड पर लिखवाकर कार्यवाही करवायी गयी है।
इससे यह जरूर स्पष्ट होता है कि आईटीआई सिद्दीकपुर के प्रधानाचार्य मनीष पाल द्वारा कूटरचित खेल रचा गया है जिसमें उपदेश नारायण को दोषी ठहराकर उन्हें तबादला एक्सप्रेस ट्रेन पर बैठाकर ललितपुर के लिये रवाना करवा दिया गया। इससे एक कहावत चरितार्थ होती है कि 'अंधेर नगरी चौपट राजा', क्योंकि संस्थान के प्रधानाचार्य को पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य नहीं, बल्कि धनउगाही और एकछत्र राज्य की परिकल्पना के लिये संस्थान का मुखिया बनकर चला रहे हैं। जनप्रतिनिधि के लेटर पैड पर लिखे गये आरोप में कच्चे माल एवं प्रयोगात्मक कार्य खण्ड की गुणवत्ता न होने की बात से उक्त तमाम प्रश्न उठते हैं जो जांच की परिधि में आते हैं। क्या कच्चे माल का प्रत्येक वर्ष खरीदी होती है या सिर्फ कागजों तक सीमित रहता है? क्या प्रयोगात्मक परीक्षा में पुराने जॉब को बच्चों को देकर सिर्फ कोरम पूरे कराये जाते हैं? प्रयोगात्मक परीक्षाओं में पूछताछ के दौरान ज्ञात हुआ कि बच्चों को प्रयोगात्मक ज्ञान नहीं, बल्कि सिर्फ उत्तीर्ण की अंक तालिका दी जाती है, क्योंकि अनुदेशकों से संस्थान की सुरक्षा व्यवस्था सहित अन्य कार्य कराया जाता है।