आमिर। ब्यूरो चीफ। देवल। जौनपुर।चौकियां धाम, जौनपुर। मां शीतला चौकियां धाम में चल रहे 5 दिवसीय श्रीराम कथा के तीसरे दिन प्रवचन के दौरान काशी से पधारे कथा वाचक मदन मोहन मिश्रा ने बताया कि मानवता की सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है जो सभी धर्मों में श्रेष्ठ है। दीन-दुखियों की सेवा, असहाय की सहायता, पीड़ित का उपचार, गरीब बहन-बेटियों की शादी में सहयोग करना चाहिए। जीवन में ऐसे सत्कर्म करने वाले लोगों पर परमात्मा की कृपा दृष्टि हमेशा बनी रहती है जो किसी पीड़ित, परेशान, बीमार को देखकर अपनी पीड़ा समझकर उसकी सेवा रक्षा करता है। ऐसे मनुष्य को जीवन में कोई भी कठिनाई परेशानी नहीं होती। ऐसे लोगों के जीवन में परमात्मा की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। सभी जीव, जंतु, पेड़-पौधे, सृष्टि परमात्मा की बनाई हुई है। सभी जगह उनका निवास है। परमात्मा ब्रम्हाण्ड के कड़-कड़ में विराजमान हैं। इसी क्रम में ज्योतिषाचार्य कथा वाचक डा अखिलेश चंद्र पाठक ने कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए सुन्दर काण्ड का वर्णन किया। साथ ही बताया कि जब हनुमान जी ने अशोक वाटिका में प्रवेश किया तब सीता समझ चुकी थीं कि हनुमान में बल-बुद्धि दोनों ही गुण हैं। काम कितना भी मुश्किल क्यों न हो, यदि किसी व्यक्ति के पास ‘बुद्धि और बल’ है तो कामयाबी आसानी से प्राप्त की जा सकती है। बुद्धि और बल में निपुणता का नाम ही योग्यता है। इन दोनों गुणों से ही व्यक्ति योग्य बनता है। समय अनुसार इन दोनों गुणों का उपयोग करते हुए किसी बड़े शत्रु पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। सुन्दर काण्ड में हनुमान जी ने मां सीता से भोजन मांगा था। तब सीता जी ने हनुमान जी से कहा कि अशोक वाटिका में जाकर फल खा लो। सीता जी ने कहा- सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी।
परम सुभट रजनीचर भारी।। सीता जी ने कहा हे बेटा! सुनो, बड़े भारी योद्धा राक्षस इस वन की रखवाली करते हैं। इस बात पर हनुमानजी का जवाब था- तिन कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं।। हे माता! यदि आप मन में सुख मानें, प्रसन्न होकर आज्ञा दें तो मुझे उनका भय बिल्कुल नहीं है। उन्होंने बताया कि जिस आत्मविश्वास से हनुमान जी सीता जी को कह रहे थे। एक क्षण के लिए सीता जी को लगा कि कहीं यह अतिशयोक्ति तो नहीं है। फिर सीता जी को हनुमान जी से किया हुआ वार्तालाप याद आया। सीता जी जानती थीं कि अशोक वाटिका में प्रवेश करने का अर्थ है सीधे रावण तक पहुंचना और रावण के सामने केवल बल से काम नहीं चलेगा। बल के साथ बुद्धि भी चाहिए। वे हनुमान जी के भीतर दोनों को संयुक्त रूप से देख चुकी थीं। हनुमान जी ने बुद्धि का प्रयोग करते हुए ही लंका प्रवेश किया और सीता की खोज की थी। इस दौरान उन्होंने बल का प्रयोग करते हुए लंका की रखवाली करने वाली लंकिनी पर भी विजय प्राप्त की थी। देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदय धरि तात मधुर फल खाहु।।
हनुमानजी को बुद्धि और बल में निपुण देखकर जानकीजी ने कहा- जाओ। हे तात! रघुनाथ जी के चरणों को हृदय में धारण करके मीठे फल खाओ। इस प्रसंग में हनुमान जी के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि जीवन तभी सुंदर है, जब हमारे पास बुद्धि और बल दोनों हों। इस अवसर पर शिव आसरे गिरी, राम आसरे साहू, मदन साहू, अनिल साहू, सुरेन्द्र गिरी, अजीत गिरी, अमित गिरी, सुरेन्द्र नाथ त्रिपाठी, गुड्डू त्रिपाठी, प्रवेश त्रिपाठी, हनुमान त्रिपाठी सहित तमाम लोग मौजूद रहे।