"बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) - नवाचार, अनुसंधान और राष्ट्रीय प्रगति का सशक्त आधार" विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला
देवल संवाददाता, आज़मगढ़, 14 दिसम्बर 2025, "बौद्धिक संपदा अधिकार केवल कानूनी अवधारणा नहीं, बल्कि राष्ट्र की नवाचार क्षमता और आर्थिक विकास का आधार है। बौद्धिक संपदा अधिकार बौद्धिक जागरूकता, पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क, अनुसंधान नैतिकता और नवाचार, इंस्टीट्यूट और इंटरप्राइजेज़ के लिए बौद्धिक संपदा राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक हैं, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार ने एक दिवसीय कार्यशाला यह बात कही। उच्च शिक्षा प्रशासन और शोध मार्गदर्शन में उनके विस्तृत अनुभव ने प्रतिभागियों को अत्यंत लाभान्वित किया। आपको बताते चले कि उत्तर प्रदेश विज्ञान एव प्रौधोगिकी परिषद, लखनऊ द्वारा प्रायोजित "बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR): नवाचार, अनुसंधान और राष्ट्रीय प्रगति का सशक्त आधार" विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का महाराजा सुहेल देव विश्वविद्यालय, आज़मगढ़ मे सफल आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों, शोधार्थियों और शिक्षकों में जागरूकता को बढ़ावा देना तथा अनुसंधान एवं नवाचार में बौद्धिक संपदा के महत्व को समझाना था।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलपति प्रो. अजय
तनेजा ने प्रतिभागियों से कहा कि शोध में नीतिशास्त्र का होना जरूरी है, जो शोधकर्ता को सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, पारदर्शिता और मानव तथा सामाजिक मूल्यों का सम्मान करते हुए अनुसंधान करने के लिए प्रेरित करता है। यह शोध की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और नैतिक वैधता को सुनिश्चित करता है। शोध नीतिशास्त्र ऐसे सिद्धांतों और दिशानिर्देशों का समुच्चय है जो सुनिश्चित करते हैं कि शोध वैज्ञानिक, नैतिक और मानवीय मानकों के अनुरूप किया जाए। प्रतिभागियों को किसी भी प्रकार के दबाव या बाध्यता के बिना शोध में शामिल किया जाना चाहिए। शोध के उद्देश्य, प्रक्रिया और संभावित जोखिमों के बारे में पूर्ण जानकारी दी जानी चाहिए। शोध नीतिशास्त्र अनुसंधान की आत्मा है। यह एक ऐसा ढांचा प्रदान करता है जो वैज्ञानिक सत्य, सामाजिक ज़िम्मेदारी और मानवीय मूल्यों को एक साथ जोड़ता है। किसी भी शोध की सफलता केवल उसके निष्कर्षों में नहीं, बल्कि उसके नैतिक मानकों में भी निहित होती है। नैतिक शोध ही वास्तविक प्रगति और नवाचार का आधार बनता है।
डॉ. विनोद कुमार सिंह जो कि आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के वैज्ञानिक है, ने बताया कि बौद्धिक सम्पदा अधिकार वह कानूनी ढांचा है जो किसी व्यक्ति या संस्थान द्वारा विकसित ज्ञान, खोज, विचार, आविष्कार, डिज़ाइन, साहित्यिक और कलात्मक कृतियों को संरक्षण देता है। यह सुरक्षा किसी भी शोधकर्ता को यह विश्वास दिलाती है कि उसका विचार सुरक्षित है और उसका अनुचित उपयोग नहीं किया जाएगा। यही सुरक्षा अधिक नवाचार को प्रेरित करती है बौद्धिक सम्पदा अधिकार मेंशोध कार्य तब फलदायी माना जाता है जब उससे समाज, विज्ञान और उद्योग को ठोस लाभ प्राप्त हो। शोध को एक दिशा प्रदान करता है, क्योंकि जब शोधकर्ता जानते हैं कि उनके नवाचार और निष्कर्ष सुरक्षित रहेंगे, तो वे अधिक स्वतंत्रता, साहस और मौलिकता के साथ कार्य कर सकते हैं। आज विश्व की अर्थव्यवस्था ज्ञान-आधारित हो चुकी है। सूचना, तकनीक और विज्ञान पर आधारित उद्योग तेजी से बढ़ रहे हैं।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस के प्रो. रजनीश सिंह ने कहा कि किसी भी देश के विकास में बौद्धिक
सम्पदा अधिकार एक इंजन की तरह कार्य करता है: पेटेंट नए आविष्कारों को संरक्षण देते हैं, कॉपीराइट साहित्य और सृजन के क्षेत्र को सुरक्षित रखते हैं, ट्रेडमार्क ब्रांड वैल्यू को बढ़ाते हैं, और डिज़ाइन अधिकार नवोन्मेषी उत्पाद विकास को प्रोत्साहित करते हैं। आज भारत वैश्विक नवाचार सूचकांक में लगातार प्रगति कर रहा है। इसका कारण यह है कि भारत ने बौद्धिक संपदा अधिकार के ढांचे को मजबूत किया है। अनुसंधान, स्टार्ट-अप इकोसिस्टम, मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया में बौद्धिक संपदा अधिकार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। और युवाओं को स्टार्टअप तथा अनुसंधान में प्रवेश करने के लिए प्रेरित करता है। यह शोध को नैतिकता और मौलिकता के साथ जोड़ता है। साहित्यिक चोरी की समस्या कम होती है। शोध निष्कर्षों को उद्योग में लागू करने का अवसर बढ़ता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। बौद्धिक सम्पदा अधिकार केवल कानूनी अधिकार नहीं, बल्कि नवाचार का संरक्षक, शोध का प्रेरक और राष्ट्र की उन्नति का आधार है। यदि हम एक विकसित भारत का निर्माण करना चाहते हैं, तो हमें शोध और बौद्धिक सम्पदा अधिकार दोनों को समान महत्व देना होगा।
कार्यशाला का संचालन डॉ. ऋतंभरा तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सर्वेश कुमार सिंह ने किया। सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए। विश्वविद्यालय के कुलसचिव, परीक्षा नियत्रक, प्रतिभागी छात्र-छात्राएं/शिक्षक एवं विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. परमानंद पाण्डेय, डॉ। रेनू तिवारी, डॉ. हरेन्द्र प्रजापति, डॉ। धीरज, डॉ योगेन्द्र त्रिपाठी, डॉ. नितेश, डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रहरी, डॉ. भंवर लाल सेंणचा, डॉ. साक्षी ओझा, डॉ. दीक्षा उपाध्यायऔर कर्मचारी मौजूद रहे। कार्यक्रम में लगभग दो सौ प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया।
