भारतीय वायुसेना अपनी आक्रामक ताकत को अनिवार्य 42 लड़ाकू विमानों के स्क्वाड्रन से आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार है।
दो मोर्चे पर युद्ध की स्थिति के लिए तैयार हो रही वायुसेना
एक रक्षा सूत्र के अनुसार, ''दक्षिण एशिया क्षेत्र की स्थिति और भू-राजनीतिक उथल-पुथल को देखते हुए शीर्ष अधिकारियों और नीति निर्माताओं का मानना है कि 42 लड़ाकू विमानों के स्क्वाड्रन की अनिवार्य ताकत पर्याप्त नहीं है।''
उन्होंने आगे कहा, ''आंतरिक समीक्षा के अनुसार, 42 की अनिवार्य संख्या पर्याप्त नहीं है, और संभावना है कि आने वाले समय में इस संख्या में और वृद्धि हो सकती है।'' यह घटनाक्रम ऑपरेशन सिंदूर के चार महीने बाद हुआ है।
42 लड़ाकू विमानों के स्क्वाड्रन में 25-35 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना
सेना के शीर्ष अधिकारियों ने चार दिवसीय संघर्ष को चीन द्वारा अपने छद्म पाकिस्तान के माध्यम से अपने सैन्य साजो-सामान का परीक्षण करने का एक परीक्षण स्थल बताया।
नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में उप-सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल ¨सह ने इस बात पर जोर दिया कि चीन अपनी हथियार प्रणालियों का आकलन करने के लिए वास्तविक संघर्षों को एक 'लाइव लैब' की तरह इस्तेमाल कर रहा है, ''जिसे बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए''।
दो मोर्चों पर युद्ध की स्थिति के दबाव को देखते हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों की संख्या को 42 स्क्वाड्रन की सीमा से ऊपर बढ़ाने पर गहन चर्चा चल रही है।
प्रत्येक स्क्वाड्रन में 16-18 जेट होते हैं
सूत्रों के अनुसार, इस संख्या में 25-35 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है। प्रत्येक स्क्वाड्रन में 16-18 जेट होते हैं। नए अधिदेश के लिए सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति से भी मंजूरी लेनी होगी। भारतीय वायुसेना पहले से ही लड़ाकू विमानों की घटती स्क्वाड्रनों की एक बड़ी समस्या का सामना कर रही है।