देवल संवाददाता, "हिन्दी आज दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है " - आज यह बात महाराजा सुहेल देव विश्वविद्यालय, आजमगढ़ के कुलपति प्रो.संजीव कुमार ने ‘पूर्वाञ्चल का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अवदान’ (आजमगढ़ के विशेष संदर्भ मे) विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में अध्यक्षता करते हुए कही |यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के द्वारा आयोजित किया गया | कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के दीप प्रज्ज्वलन और वंदना से शुरू हुआ| कुलपति ने अपने संस्मरण सुनाते हुए बताया कि हिन्दी भाषा का प्रयोग विदेशों में भी खूब हो रहा है| अमेरिका के एक संग्रहालय में “निःशुल्क” और “कृपया खुले पैसे दें” हिन्दी में लिखा हुआ देखा| अमेरिका, फिलिस्तीन,त्रिनिड्राड, अलहजर, गाजापट्टी, मारिशस,फ़िजी, सूरीनाम, रूस जैसे देशो में बहुत सारे लोग हिन्दी बोलते है | विदेश के विश्वविद्यालयों में भी हिन्दी विभाग खुल रहें है | मारिशस में तो भोजपुरी विश्वविद्यालय है |आज देश और विदेश के हवाई अड्डों पर भी हिन्दी लिखी जा रही है |
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता डॉ मीरा सिंह जो अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य परिषद की संस्थापक भी है;ने लोकगीतों को एक सशक्त विधा बताया | लोकगीत नारी मन का मनोविज्ञान है |लोकगीत की कुछ पंक्तियां भी गा कर सुनाई|
कार्यक्रम के वक्ता डॉ शिव कुमार निगम संयुक्त निदेशक राजभाषा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा हिन्दी को विश्व की सातवीं भाषा का दर्जा दिया गया है| मारिशस,फ़िजी, सूरीनाम में भारतीय मूल के लोग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हैं |भारतीय संविधान में भी हिन्दी का जिक्र है |
प्रो दीपक कुमार त्यागी जो दीन दयाल वि.वि. गोरखपुर के हिन्दी विभाग,ने पूर्वाञ्चल का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अवदानपर विशेष प्रकाश डालते हुए कहा कि आजमगढ़ 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा। यहाँ के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और लगभग 81 दिनों तक अंग्रेजों के नियंत्रण से मुक्त रहे। यह घटना आजमगढ़ के देशभक्तिपूर्ण इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है।आजमगढ़ ने साहित्य, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' हिन्दी के कवि, निबन्धकार तथा सम्पादक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति के रूप में कार्य किया। उन्होंने प्रिय प्रवास नामक खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य लिखा | कैफी आज़मी एक उर्दू के शायर थे। उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव मिजवां में जन्मे थे जिन्हे गांव के सिधेसाधे माहौल में कविताएं पढ़ने का शौक लगा। 11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली गज़ल लिखी। चंद्रबली पांडेय हिन्दी साहित्यकार तथा विद्वान थे। उन्होने हिंदी भाषा और साहित्य के संरक्षण, संवर्धन और उन्नयन में अपने जीवन की आहुति दे दी। उन्होने हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा प्रदान कराने में ऐतिहासिक भूमिका निभायी।श्याम नारायण पाण्डेय वीर-रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। वह केवल कवि ही नहीं अपितु अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे।
प्रो प्रभा शंकर सिंह जो कि काशी हिन्दू वि वि के हिन्दी विभाग से,उन्होनें बताया कि आजमगढ़ एक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विरासत का जिला है | इस धरती ने राहुल सांकृत्यायन, अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, कैफी आजमी और शबाना आजमी जैसे महान साहित्यकारों और कलाकारों को जन्म दिया है, जिन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति को समृद्ध किया। राहुल सांकृत्यायन जिन्हें महापंडित की उपाधि दी जाती है हिंदी के एक प्रमुख साहित्यकार थे। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् थे और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। वह हिंदी यात्रासाहित्य के पितामह कहे जाते हैं। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिंदी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था। इसके अलावा उन्होंने मध्य-एशिया तथा कॉकेशस भ्रमण पर भी यात्रा वृतांत लिखे जो साहित्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।प्रो तुलसी राम की रचना मुरदहिया और मर्णिकर्णिका की चर्चा की,जो दलित साहित्य की धरोहर हैं |
कार्यक्रम में प्रो प्रत्यूष दुबे दीन दयाल वि.वि. गोरखपुर के हिन्दी विभाग के प्राध्यापक,डॉ विनम्र सेन इलाहाबाद वि.वि.,प्रो.गीतासिंह हिन्दी परिषद,महाराजा सुहेल देव विश्वविद्यालय आजमगढ़, विश्वविद्यालय के डीन प्रो। देवेन्द्र कुमार सिंह तथा प्रो.अखिलेश चंद्र नें भी अपने विचार व्यक्त किए| डॉ.सूर्य प्रकाश अग्रहरी सहित विश्वविद्यालय के कुलसचिव ,शिक्षक और विद्यार्थी गण उपस्थित रहे| कार्यक्रम का स्वागत भाषण डॉ मनीषा सिंह,संचालन हिन्दी विभाग की डॉ निधि सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ हिमांशु राय ने किया |