देवल संवाददाता, लखनऊ।लखनऊ। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मथुरा के प्रसिद्ध कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज के बीच चल रहा जुबानी विवाद अब और गहरा गया है। इस विवाद में जौनपुर की मछलीशहर से सपा सांसद प्रिया सरोज ने कथावाचक पर तीखा हमला बोलते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट के जरिए मामले को और हवा दे दी है।
प्रिया सरोज ने अपने पोस्ट में अनिरुद्धाचार्य पर निशाना साधते हुए लिखा, "जब एक बाबा कृष्ण जी का नाम बताने में असफल हो जाता है तो अपनी छवि सुधारने के लिए वे सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम हिंदू-मुस्लिम से जोड़कर देश-प्रदेश का माहौल खराब करते हैं। यही सिखाते हैं, ये अपने प्रवचन में।" उन्होंने पोस्ट के साथ अनिरुद्धाचार्य की तस्वीर भी साझा की। इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी है। जहां कुछ यूजर्स ने इसे सत्य और साहस की आवाज बताया, वहीं कुछ ने इसे संत समाज के खिलाफ बयान करार दिया।
इस विवाद की शुरुआत 2023 में लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे पर अखिलेश यादव और अनिरुद्धाचार्य की मुलाकात के एक पुराने वीडियो से हुई, जो हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो में अखिलेश, अनिरुद्धाचार्य से पूछते हैं कि मां यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण को सबसे पहले किस नाम से पुकारा था। जवाब में अनिरुद्धाचार्य ने कहा कि मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को पहले "कन्हैया" कहकर पुकारा था। इस पर अखिलेश ने तंज कसते हुए कहा, "बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं, बस यहीं आपका और हमारा रास्ता अलग-अलग हो गया।" अखिलेश ने अनिरुद्धाचार्य को 'शूद्र' शब्द का इस्तेमाल न करने की सलाह भी दी।
16 जुलाई को अनिरुद्धाचार्य ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो साझा कर अखिलेश यादव पर बिना नाम लिए हमला बोला। उन्होंने कहा, "यूपी के एक पूर्व मुख्यमंत्री मुझसे कहते हैं कि आपका रास्ता अलग और मेरा रास्ता अलग, क्योंकि मैंने उनके सवाल का उनके मनमुताबिक जवाब नहीं दिया। मैंने वही जवाब दिया जो सच है। वो मुसलमानों से ऐसा नहीं कहते कि तुम्हारा रास्ता अलग, हमारा रास्ता अलग। वो कहते हैं कि जो तुम्हारा रास्ता है, वही हमारा रास्ता है।" इस बयान को सपा समर्थकों ने हिंदू-मुस्लिम विभाजन से जोड़कर देखा, जिसके बाद विवाद और बढ़ गया।
प्रिया सरोज ने अनिरुद्धाचार्य के इस बयान को सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाला करार देते हुए कहा कि धार्मिक मंचों का उपयोग समाज को बांटने के लिए किया जा रहा है, जो भारतीय लोकतंत्र और सांस्कृतिक समरसता के खिलाफ है। उनकी पोस्ट को राजनीतिक गलियारों में अनिरुद्धाचार्य पर सीधे हमले के रूप में देखा जा रहा है।