देवल संवाददाता,आजमगढ़। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निवासी लाल बिहारी मृतक दागी, पुत्र स्व. चौथी, ने मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश शासन को एक मार्मिक पत्र लिखकर अपनी व्यथा सुनाई है। लाल बिहारी, जो अनुसूचित जाति (चमार) हैं और एक गरीब बुनकर, किसान, मजदूर हैं, ने आरोप लगाया है कि 30 जुलाई 1976 में तत्कालीन तहसील सदर, आजमगढ़ के नायब तहसीलदार के न्यायालय ने उन्हें मुकदमा नंबर 298 के तहत जीवित होते हुए भी मृत घोषित कर दिया था। इस घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया।
18 साल के लंबे संघर्ष और मृतक संघ के प्रयासों के बाद, 30 जून 1994 को जिला अधिकारी, आजमगढ़ के आदेश से ग्राम खलीलाबाद के अभिलेखों में उन्हें पुनः जीवित घोषित किया गया। लेकिन उनकी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं। लाल बिहारी का आरोप है कि 2016 में तहसील निजामाबाद के उपजिलाधिकारी न्यायालय ने धोखाधड़ी से उनके चचेरे भाइयों की जमीन उनके नाम दर्ज कर दी, जिससे पारिवारिक विवाद और खूनी संघर्ष की साजिश रची गई।
लाल बिहारी का कहना है कि शासन और प्रशासन की मिलीभगत से 1976 और 1994 की महत्वपूर्ण सरकारी फाइलें अभिलेखागार से गायब कर दी गई हैं। इन फाइलों के अभाव में उनकी और उनके परिवार की जमीनों के हक पर खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने बताया कि इस मामले में आजमगढ़ कोतवाली में 2018 में तीन मुकदमे जनपद के अधिकारियों द्वारा (34, 66, और 67) अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज किए गए, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
लाल बिहारी ने अपने पत्र में बताया कि इस अन्याय के कारण उनकी करोड़ों रुपये की जमीन बिक गई, वे कर्ज में डूब गए, और आर्थिक, शारीरिक व मानसिक शोषण का शिकार हुए। भ्रष्टाचार, घूसखोरी और मानवाधिकार हनन के खिलाफ वे दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन न्याय अब तक नहीं मिला। उन्होंने मुख्य सचिव से अनुरोध किया है कि 1976 और 1994 की गायब फाइलें 15 दिनों के भीतर उपलब्ध कराई जाएं और उन्हें न्याय प्रदान किया जाए।