सामाजिक सुरक्षा के वैश्विक मानकों पर भारत के खरा न उतरने की दलील देकर विदेश में नौकरी करने वाले भारतीयों के भविष्य निधि फंड न देने से लेकर मुक्त व्यापार समझौते में सामाजिक सुरक्षा का प्रविधान हटा देने की विकसित देशों की धौंसगिरी अब ज्यादा लंबी नहीं चल पाएगी। भारत का सामाजिक सुरक्षा कवरेज बीते कुछ वर्षों में दोगुनी बढ़त के साथ 48.8 प्रतिशत हो गया है।
इसके बाद केंद्र सरकार ने देशभर में जारी सामाजिक सुरक्षा की तमाम योजनाओं का डाटा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के मानकों के अनुरूप एकत्र करने का अभियान शुरू किया है।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने आइएलओ के साथ मिलकर सामाजिक सुरक्षा के आंकड़े जुटाने के इस अभियान में अब तमाम राज्यों में लागू सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण योजनाओं के डाटा को भी इसमें शामिल करने की पहल शुरू करने का फैसला किया है।
संगठित आंकड़ों के अभाव का फायदा उठे रहे अमेरिका जैसे देश
सरकार का मानना है कि भारत की सामाजिक सुरक्षा का कवरेज वर्तमान में 65 प्रतिशत है लेकिन संगठित आंकड़ों के अभाव में अमेरिका तथा अन्य विकसित देश इसका फायदा उठाने का प्रयास करते हैं। केंद्र सरकार की स्कीमों के अलावा राज्यों में महिलाओं, वृद्धों, विधवाओं को पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं का लाभ मिल रहा है। लेकिन राज्यों की ऐसी पहल देश के सामाजिक सुरक्षा कवरेज के आंकड़ों का हिस्सा नहीं है।
इसके मद्देनजर ही श्रम मंत्राल ने आइएलओ के साथ मिलकर एक व्यापक डाटा-पुलिंग-एक्सरसाइज शुरू किया है। इसमें आधार को 34 प्रमुख केंद्रीय योजनाओं जैसे मनरेगा, ईपीएफओ, ईएसआइसी, अटल पेंशन योजना और पीएम-पोषण आदि में लाभार्थियों की पहचान के लिए इस्तेमाल किया गया। कुल 200 करोड़ रिकार्ड का विश्लेषण कर इसके विशिष्ट लाभार्थियों की पहचान की गई। श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि इस अध्ययन के अनुसार भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा योजना के दायरे में है। इनमें से 48.8 प्रतिशत लोगों को नकद लाभ मिल रहे हैं।
आइएलओ के मानक आंकड़ों के हिसाब से 2021 के 24.4 प्रतिशत के मुकाबले भारत का सामाजिक सुरक्षा कवच 2024 में 48.8 प्रतिशत हो गया। यह वृद्धि इसलिए हुई क्योंकि अब उन सभी केंद्रीय योजनाओं को भी शामिल किया गया है, जिन्हें पहले नहीं गिना गया था। सुरक्षा मानकों की कसौटी पर खरा न उतरने को आधार बनाकर मुक्त व्यापार समझौते से सामाजिक सुरक्षा कवच के प्रविधान हटाए जाने के संबंध में पूछे जाने पर मंडाविया ने कहा कि अमेरिका जैसे देशों में भी वहां नौकरी करने वाले भारतीयों के भविष्य निधि के फंड यहां आने के बाद नहीं दिए जाते।
इसलिए मंत्रालय ने राज्यों में चलाई जा रही सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं का आंकड़ा आइएलओ के मानकों के अनुरूप जुटाने को लेकर चर्चा शुरू कर दी है।
उन्होंने कहा कि कई राज्यों में महिलाओं, विधवाओं, वृद्धों को नकद राशि हर महीने देने की योजनाएं चल रही हैं। केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना से इतर 16 राज्यों में संपूर्ण स्वास्थ्य सुरक्षा योजना लागू है। 12 करोड़ लोगों को आवास दिया जा चुका है और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिल रहा है। खाद्य सुरक्षा जैसी योजनाओं के लाभ भी इसमें शामिल नहीं किए गए हैं।
राज्यों के साथ आंकड़े जुटाने को लेकर हुई बैठक
मंडाविया ने कहा कि यदि इन पहलुओं को जोड़ा जाए तो भारत की वास्तविक सामाजिक सुरक्षा कवरेज 65 प्रतिशत से अधिक होगी। जबकि, विकसित देशों में सामाजिक सुरक्षा 60 से लेकर 90 प्रतिशत तक है।
राज्यों के साथ आंकड़े जुटाने की इस पहल के तहत पहले चरण में 19 मार्च को एक हाइब्रिड बैठक हुई, जिसमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्यों का चयन किया गया है।
इन राज्यों से केंद्र स्तर पर डाटा एकत्र कर सत्यापन और मिलान किया जाएगा। श्रम मंत्री ने कहा कि जेनेवा में आइएलओ की अगली बैठक में सामाजिक सुरक्षा के भारत के आंकड़ों को शामिल करने का मुद्दा वे स्वयं उठाएंगे।