राकेश, देवल ब्यूरो,सोनभद्र। प्राकृतिक खनिज संपदाओं से समृद्ध जनपद सोनभद्र आज भी बुनियादी विकास की राह देख रहा है। कहा जाता है कि जहां खनिज संपदाओं व उद्योग धंधों की भरमार हो वहां विकास की असीम संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं। परंतु जनपद की स्थिति इसके एकदम विपरीत है। खनन उद्योग यहां के प्रमुख धंधों में से एक है जिससे हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार तो मिलता ही है साथ ही प्रदेश को भारी राजस्व की भी प्राप्ति होती है, जो जनपद के विकास के पहिए को गति प्रदान करते हैं। लेकिन जब इन्हीं उद्योग धंधों में भ्रष्टाचार के दीमक लग जाए तो वहां की जनता खुद को ठगा सा महसूस करती हैं।
जनपद के ओबरा तहसील अंतर्गत ग्राम खेबंधा, अगोरी, बरहमोरी, भगवा, चौरा आदि में हो रहे बालू के अवैध खनन से प्राकृतिक क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंच रहा है। बालू के खनन क्षेत्र पर पट्टाधारकों द्वारा निर्धारित क्षेत्रफल से आगे बढ़कर बालू का बेखौफ अवैध खनन किया जा रहा है। खननकर्ताओं द्वारा नदी की बिच जलधारा को बांधकर लिफ्टिंग मशीनों एवं पोकलेन मशीनों द्वारा नांव पर पाइप कि श्रीखला जोड़ कर अवैध बालू मोरंग का खनन किया जा रहा है,जिससे नदियों का प्राकृतिक स्वरूप तो बिगड़ ही रहा है साथ ही उसमें आश्रय लेने वाले संकटग्रस्त जलिय जन्तुओं,कछुआ मगरमच्छ आदि के जीवन पर भी संकट मंडरा रहा है। इस बाबत हाल ही में अवैध बालू खनन को लेकर जन अधिकार पार्टी के भागीरथी सिंह मौर्य ने खनिज अधिकारी को पत्रक सौंप कर अवैध खनन के जांच की मांग की थी। प्रदेश सरकार व एनजीटी के गाइडलाइन में यह बात स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि किसी भी दशा में नदी की जलधारा को रोका नहीं जाएगा। बावजूद इसके अवैध बालू खननकर्ताओं के माथे पर जरा भी शिकन नहीं है। शिकायतकर्ताओं द्वारा बार-बार शिकायत करने के बावजूद कोई विभागीय कार्यवाही ना होना इस बात का संकेत है की इस कार्य में विभाग के अधिकारियों की भी संलिप्तता है। निजी लाभ और राजस्व की चोरी से एक ओर जहां प्राकृतिक जैव विविधता को क्षति पहुंच रही है वहीं दूसरी ओर राजस्व की चोरी से क्षेत्र का विकास भी पीछे हो रहा है। निर्धारित खनन क्षेत्र पर लगे साइन बोर्ड एनडी फार्मा प्राइवेट लिमिटेड, एसके बायो, आरके कंस्ट्रक्शन एंड ट्रांसपोर्ट इस बात की ओर इंगित करते हैं कि खनन क्षेत्र में नदी की जलधारा अवरुद्ध करना और प्राकृतिक संतुलन को बिगड़ने की जिम्मेदारी भी इन्हीं पर है। इस मामले पर विभागीय अधिकारियों का मौन रहना प्रकृति और जनपद के लिए बेहद खतरनाक है।
