कृष्ण कुमार तिवारी, ब्यूरो चीफ ,अंबेडकर नगर ,दैनिक देवल |
विश्व मंगल परिवार सेवा संस्थान द्वारा ग्राम च्यूंटीपारा में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस में वृंदावन से पधारी हुई देवी महेश्वरी जी ने वेदव्यास जी एवं श्री शुक देव जी की कथा वृतांत सुनाने के तदोपरांत शिव सती प्रसंग का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि एक दिन भगवान शिव और सती जी कैलाश पर्वत पर विराजमान थे तभी आकाश मार्ग से विमानों को जाते देख सती जी के मन में जिज्ञासा हुई और भोले नाथ ने उनकी जिज्ञासा को पूर्ण करते हुए बताया कि ये विमान आपके पिता दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया उसी में सभी देवता जा रहे है यह सुन सती जी भी जाने की जिद करने लगी शिव जी के मना करने के बाद भी नहीं मानी तब नंदी जी के साथ सती जी कनखल की ओर प्रस्थान करती है वहां शिव जी का भाग न देखकर क्रोधित हो जाती है और स्वयं को क्रोधाग्नि में भस्म कर देती है जिससे कुपित होकर भगवान शंकर ने वीरभद्र को भेजा वीरभद्र ने दक्ष को मारकर यज्ञ विध्वंश का दिया और शिव जी सती जी को गोद में लेकर आकाश मार्ग में भ्रमण करने लगे यह देखकर श्री हरि विष्णु ने अपने सुदर्शन से सती जी के अंगों को काटना शुरू कर दिया इससे शिव जी का मोह भंग हुआ और जहां जहां वो अंग गिरे वहां वहां शक्ति पीठ स्थापित हुए यह प्रसंग सुनकर समस्त श्रोता भक्तगण मंत्र मुग्ध हो गए