भारत से अरब और यूरोपीय देशों के साथ अमेरिका के पूर्वी तट पर लाल सागर और स्वेज नहर के रास्ते ही सामान भेजा जाता है। भारत का करीब एक-तिहाई कंटेनर एक्सपोर्ट और कुल निर्यात का 15% लाल सागर के रास्ते होता है। सामान भेजने में ज्यादा समय लगने के कारण कंपनियों ने चीन तथा अन्य एशियाई देशों के लिए भी कंटेनर के किराये में बढ़ोतरी कर दी है।रेड सी इलाके में यमन के हाउती विद्रोहियों और अमेरिका के नेतृत्व वाले करीब दर्जन भर देशों के समूह के बीच टकराव बढ़ने का भारत के आयात और निर्यात पर व्यापक रूप से दिखने लगा है। निर्यातकों के संगठन फियो के नवनियुक्त अध्यक्ष इसरार अहमद के अनुसार यूरोप के लिए कंटेनर का किराया 200% और अमेरिका के लिए 100% बढ़ गया है। बीमा और सरचार्ज में भी बढ़ोतरी हुई है। 500 डॉलर का सरचार्ज करीब 1500 डॉलर हो गया है। कम वैल्यू वाले सामान इससे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।
भारत से अरब और यूरोपीय देशों के साथ अमेरिका के पूर्वी तट पर लाल सागर और स्वेज नहर के रास्ते ही सामान भेजा जाता है। भारत का करीब एक-तिहाई कंटेनर एक्सपोर्ट और कुल निर्यात का 15% लाल सागर के रास्ते होता है। इसरार अहमद ने जागरण प्राइम को बताया कि सामान भेजने में ज्यादा समय लगने के कारण कंपनियों ने चीन तथा अन्य एशियाई देशों के लिए भी कंटेनर के किराये में बढ़ोतरी कर दी है। कंपनियों का कहना है कि कंटेनर की कमी के कारण ऐसा हुआ है।फियो प्रमुख के अनुसार, मौजूदा समय को एडजस्टमेंट का चरण कह सकते हैं। आयातक और निर्यातक बदलते हालात के अनुसार काम कर रहे हैं। डिलीवरी में दो-तीन सप्ताह ज्यादा लगने की आशंका को देखते हुए ग्राहक अब पहले ऑर्डर देने लगे हैं। वे डिलीवरी भी समय से पहले चाहते हैं।इसरार अहमद चेन्नई स्थित फरीदा ग्रुप की कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। यह ग्रुप बड़े पैमाने पर लेदर शू एक्सपोर्ट करता है। उन्होंने बताया कि उनका ज्यादातर निर्यात एफओबी आधारित है। इसमें जहाज से ढुलाई और बीमा का खर्च खरीदार उठाते हैं। इसलिए हमारा खर्च तो नहीं बढ़ा, लेकिन ग्राहकों के लिए लागत में इजाफा हुआ है। उनके लिए डिलीवरी का समय और खर्च दोनों बढ़ गया है।फियो के महानिदेशक और सीईओ अजय सहाय ने बताया कि निर्यात के कन्साइनमेंट की रीशेड्यूलिंग हो रही है। कहीं निर्यातक ने सामान होल्ड कर रखा है तो कहीं ग्राहक ने। उदाहरण के लिए जिस सामान की डिलीवरी 15 फरवरी तक होनी थी, उसकी डिलीवरी अब फरवरी के अंत तक होगी। कुछ ऑर्डर की डिलीवरी अगले वित्त वर्ष में भी जा सकती है। उन्होंने बताया कि आयात और निर्यात मिलाकर भारत का 220 से 230 अरब डॉलर का ट्रेड रेड सी के रास्ते होता है।फियो का आकलन है कि भारत के पास 306 अरब डॉलर का निर्यात बढ़ाने की संभावनाएं ऐसी हैं, जिनका अभी तक दोहन नहीं हुआ है। सिर्फ 10 बड़े बाजारों में ही 150 अरब डॉलर से अधिक का निर्यात बढ़ाने की संभावनाएं हैं। अमेरिका को 46 अरब डॉलर, यूरोपियन यूनियन को 48.5 अरब डॉलर और संयुक्त अरब अमीरात को 14 अरब डॉलर का निर्यात जल्दी बढ़ाया जा सकता है।निर्यात बढ़ाने की संभावनाओं पर फियो के नवनियुक्त अध्यक्ष इसरार अहमद का कहना है कि सरकार ने संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं, जिससे बाजार तक बेहतर पहुंच हुई है। जल्दी ही इंग्लैंड और जीसीसी (खाड़ी देश) के साथ तथा अगले कुछ वर्षों में यूरोपियन यूनियन के साथ एफटीए की उम्मीद है।फियो प्रमुख के अनुसार निर्यात में राज्यों की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है। सिर्फ पांच राज्य देश का 70% से अधिक निर्यात कर रहे हैं। गुजरात का हिस्सा 30% से अधिक है, तो 15 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है। करीब 500 जिलों ने निर्यात रणनीति तैयार की है, वहां जिला निर्यात संवर्धन समिति भी बनाई गई है। केंद्र और राज्य सरकारों की मदद से इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमियां दूर करने से जिला तथा राज्य स्तर पर निर्यात तेजी से बढ़ सकता है। इसरार अहमद ने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ बोर्ड ऑफ ट्रेड की बैठक में भी ये मुद्दे रखे। विदेश व्यापार महानिदेशालय के अनुसार देश का 80% निर्यात 62 जिलों से होता है।उनका कहना है कि देश में जिस तरह कंटेनर बनाने की पहल की गई है, उसी तरह विश्वस्तरीय भारतीय शिपिंग लाइन भी खड़ी की जानी चाहिए। निर्यात बढ़ने के साथ ट्रांसपोर्ट खर्च के रूप में काफी विदेशी मुद्रा विदेश जा रही है। वर्ष 2021 में हमने करीब 80 अरब डॉलर जहाजों से सामान ढुलाई के दिए। वर्ष 2030 तक एक लाख करोड़ डॉलर की वस्तुओं के निर्यात का लक्ष्य है, इससे ट्रांसपोर्ट खर्च 200 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। अगर इसमें 25% हिस्सेदारी भी भारतीय शिपिंग कंपनी की हो तो 50 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा बचेगी। इससे भारतीय एमएसएमई विदेशी शिपिंग कंपनियों की जोर-जबरदस्ती से भी बचेंगे।हाल के समय में भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़ाया, लेकिन भारत से रूस को निर्यात ज्यादा नहीं बढ़ा है। वर्ष 2021 से 2023 के दौरान चीन से रूस को निर्यात 68 अरब डॉलर से बढ़कर 110 अरब डॉलर हो गया। इसमें 60% की बढ़ोतरी हुई। तुर्की का निर्यात 5.8 अरब डॉलर से 85% बढ़कर 11 अरब डॉलर हो गया। इस दौरान भारत का निर्यात 2.28 अरब डॉलर से बढ़कर 4 अरब डॉलर हुआ है। देखने में यह 75% बढ़ोतरी है, लेकिन इसे बढ़ाने की काफी संभावनाएं हैं।फार्मा, बायोटेक, इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी, एविएशन, ऑटोमोबाइल, हाई इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों का निर्यात बढ़ाने के लिए इनोवेशन जरूरी है। लेकिन भारत में जीडीपी का 1% से भी कम अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) पर खर्च होता है, जबकि चीन में यह जीडीपी का 2.43%, अमेरिका में 3.46%, कोरिया में 4.93% और इजरायल में 5.56% है।भारत का निर्यात कैलेंडर वर्ष 2019 में 323 अरब डॉलर था। सालाना 11.9% के औसत से बढ़ता हुआ यह 2021 में 395 अरब डॉलर और 2022 में 453 अरब डॉलर हो गया। कुछ सेगमेंट का प्रदर्शन विश्व औसत से बेहतर रहा है। जैसे, मशीनरी निर्यात वृद्धि का ग्लोबल औसत 4% था, जबकि भारत में यह 9% बढ़ा। इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स में भी ग्लोबल 7% की तुलना में भारत का निर्यात 22% बढ़ा। मेडिकल और डायग्नोस्टिक उपकरणों के मामले में 3% की तुलना में 11% वृद्धि हुई।लेकिन इसरार अहमद के मुताबिक, चिंता की बात यह है कि श्रम सघन सेक्टर में निर्यात बढ़ने की गति बहुत धीमी है। निटेड गारमेंट के वैश्विक निर्यात में 6% वृद्धि हुई जबकि भारत का निर्यात सिर्फ 2% बढ़ा। 2019 से 2022 के दौरान बांग्लादेश से निटेड गारमेंट के निर्यात में 10 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई, जबकि भारत से इनका निर्यात सिर्फ 20 करोड़ डॉलर बढ़ा। भारत का वूवेन गारमेंट निर्यात 1% बढ़ा, दूसरी तरफ बांग्लादेश के निर्यात में 6% और वियतनाम में 4% वृद्धि हुई। फुटवियर सेक्टर में ग्लोबल ट्रेड 5% बढ़ा लेकिन भारत के निर्यात में गिरावट आई। तीन साल में बांग्लादेश का निर्यात एक अरब से बढ़कर 1.7 अरब डॉलर हो गया।