जब वह घुंघरू बांधकर नाचती थीं तो हर कोई उनके साथ नाचने को मजबूर हो जाता था। वह आंखों में सपने लिए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती है लेकिन फिर एक दर्दनाक हादसा होता है और उनका पैर काट दिया जाता है। यहां से शुरू होती है सुधा चंद्रन की कहानी, जिन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत बना लिया और पूरी दुनिया में छा गईं। भरतनाट्यम की मशहूर नर्तकी और अदाकारा सुधा चंद्रन ने अपनी बायोपिक में काम करके एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा और आज वह टेलीविजन से लेकर फिल्मों तक में एक ऐसा नाम बन गई हैं, जिनको हर कोई जानता और पहचानता है। इन दिनों वह टीवी सीरियल 'डोरी' में नजर आ रही हैं। इस सिलसिले में उन्होंने हमसे खास बातचीत की, जिसमें इंडस्ट्री के साथ महिला मुद्दों पर खुलकर विचार रखे।मेरा शो 'डोरी' एक संदेश देने वाला सीरियल है। इसमें जो मेरा किरदार है, वो बहुत अलग है। एक कलाकार के तौर पर कैलाशी देवी का किरदार निभाने में काफी मजा आया है। यह पूरी तरह से निगेटिव रोल नहीं है। इसमें कई तरह के शेड्स दिए गए हैं। बहुत मुश्किल होता है एक औरत के लिए मर्द का रूप धारण करना। बस यही मुझे एक चैलेंज लगा और मैं इस तरह के चैलेंज जरूर लेती हूं, जहां पर मुझे खुद को साबित करने का मौका मिलता है। यह किरदार मैंने निभाया। इसके पीछे वजह थी कि इस तरह का रोल मैंने पहले कभी किया नहीं था।आज भले ही महिलाओं को केंद्र में रखकर फिल्में बनने लगी हों, लेकिन इसकी सबसे पहले पहल टेलीविजन ने की थी। बहुत साल पहले जब टेलीविजन में औरतों पर आधारित शोज किए गए तो लोग हंसते थे और कहते थे कि क्या यार औरतों की कहानी बना रहे हो, यह कोई नहीं देखेगा। आज फिल्मों में इसका असर देखने को मिल रहा है। यह ट्रेंड देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। आज अगर टेलीविजन पर देखें तो वक्त के साथ काफी बदलाव आया है। महिलाओं पर आधारित जो शो बन रहे हैं, उसमें वैराइटी है। कोई शो बिजनसवुमेन पर है तो कोई हाउसवाइफ के चैलेंज पर। अलग-अलग शो में महिलाओं के अलग-अलग सशक्त रूप देखने को मिल रहे हैं।लोग अकसर टीवी और OTT की तुलना करते हैं, लेकिन मुझे इन दोनों माध्यम में कोई समानता नजर नहीं आती। ये दोनों ही एक-दूसरे से बहुत अलग हैं। आप चाहे शो मेकिंग की बात करें या फिर कंटेंट की। मुझे याद है, जब फिल्में शुरू हुईं तो कुछ लोगों ने कहना शुरू किया कि अब टेलीविजन का दौर खत्म हो जाएगा। ऐसा हुआ क्या? नहीं ना। किसी का किसी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बस दर्शकों का फायदा हो गया कि उनको अलग-अलग तरह के शो देखने को मिलने लगे। टेलीविजन का जो दर्शक है, वो आज भी टीवी देखना पसंद करता है। आज के समय में इंडस्ट्री की बात करें तो मुझे लगता है कि इस दौर में सबसे बड़ा हीरो कॉन्टेंट है। अगर कॉन्टेंट अच्छा होगा और उसको अच्छी तरह से प्रस्तुत किया जाए तो हर कोई पसंद करेगा।30 साल के करियर में मुझे खुद में कोई खास बदलाव नहीं लगा। मैं तब काम कर रही थी और आज भी काम कर रही हूं। इस मामले में खुद को बहुत भाग्यशाली मानती हूं कि हमेशा अच्छे रोल ही मिले और जो किरदार मैंने निभाए उनको दर्शकों का काफी प्यार मिला। इस वजह से मैं दर्शकों की सबसे ज्यादा आभारी हूं। बस मैंने खुद को वक्त के हिसाब से एडजस्ट किया है। मुझे लगता है कि वक्त की हिसाब से हर इंसान को चलना चाहिए। यह एक सीखने का दौर भी होता है। अब ऐसा नहीं हो सकता कि मैं कहूं कि आज से तीस साल पहले जो मैंने किरदार निभाए, वैसे ही आज भी करूंगी। ऐसा नहीं हो सकता। बदलाव जरूरी है लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है कि उस बदलाव में आप खुद को कैसे ढालते हैं।हम कभी बेटी के पैदा होने की खुशी नहीं मनाते हैं। हमारे समाज की एक सोच रही है कि बेटियां बोझ होती हैं। अब इस सोच को बदलने का समय आ गया है। ऐसा नहीं है कि इसमें बदलाव नहीं हुआ है लेकिन आज के हिसाब से जिस तरह का बदलाव इस सोच में आना चाहिए था, वो नहीं आया। आज ऐसा कोई काम नहीं है कि हमारी बेटियां नहीं कर सकतीं। हर एक क्षेत्र में जहां पर बेटियों को मौका मिला, उन्होंने खुद को साबित किया। प्राइवेट से लेकर सरकारी तक हर एक जगह पर लड़कियां अपनी सफलता की कहानी लिख रही हैं।