उच्चाधिकारियों द्वारा मात्र खबरों के प्रकाशन के लिए गैर मान्यता प्राप्त पत्रकार और यूट्यूबर का किया जाता है प्रयोग
कृष्ण, देवल ब्यूरो, अंबेडकर नगर । पत्रकारिता के क्षेत्र में मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों के बीच अधिकारों और जिम्मेदारियों को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। जलालपुर क्षेत्राधिकारी अनूप कुमार सिंह के हालिया बयान ने इस मुद्दे को और हवा दी है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सरकारी संस्थानों में खबर कवरेज के लिए नहीं जाना चाहिए, क्योंकि वे पत्रकार की श्रेणी में नहीं आते। इस बयान ने कई सवाल खड़े किए हैं— सरकारी संस्थान आखिर हैं कौन से? क्या गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को खबर कवरेज का कोई अधिकार नहीं? और यदि नहीं, तो प्रेस वार्ताओं में उनकी मौजूदगी को कैसे उचित ठहराया जाए?
मामले की शुरुआत: सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नगपुर जलालपुर का विवाद
हाल ही में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नगपुर जलालपुर में खबर कवरेज के दौरान गैर मान्यता प्राप्त पत्रकार पर केंद्र के अधीक्षक जयप्रकाश द्वारा सरकारी काम में बाधा डालने और रंगदारी का आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज कराया गया। पुलिस ने इस मामले में जिला सूचना अधिकारी से पत्रकार की मान्यता की स्थिति पूछी। सूचना विभाग ने स्पष्ट किया कि वह पत्रकार मान्यता प्राप्त नहीं है। इसके आधार पर पुलिस चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी में है।
इस घटना के बाद पत्रकारों ने क्षेत्राधिकारी अनूप कुमार सिंह से संपर्क किया और पूछा कि सूचना विभाग से केवल मान्यता की स्थिति मांगी गई थी, न कि पत्रकार होने या न होने की पुष्टि। इस पर क्षेत्राधिकारी ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा, “गैर मान्यता प्राप्त पत्रकार सरकारी संस्थानों में खबर कवरेज के लिए नहीं जा सकते। आप लोग सरकारी संस्था में सवाल-जवाब कर रहे थे, जो विधिक रूप से उचित नहीं है।”
सवाल: सरकारी संस्थान कौन से हैं?
क्षेत्राधिकारी के बयान ने सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा किया कि सरकारी संस्थान आखिर हैं क्या? क्या हर वह स्थान जहां सरकारी कर्मचारी कार्यरत हैं, सरकारी संस्थान कहलाएगा, या फिर कुछ गिने-चुने संस्थान ही इस दायरे में आते हैं? उदाहरण के लिए, क्या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, तहसील, पुलिस थाना, या जिला प्रशासन के दफ्तर सभी सरकारी संस्थान हैं? इसकी स्पष्ट परिभाषा न होने से पत्रकारों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों की स्थिति क्षेत्राधिकारी के अनुसार
गैर मान्यता प्राप्त पत्रकार पत्रकार की श्रेणी में नहीं आते। लेकिन सवाल यह है कि यदि ऐसा है, तो जिला प्रशासन और पुलिस अधीक्षक द्वारा आयोजित प्रेस वार्ताओं में इन पत्रकारों को क्यों आमंत्रित किया जाता है? क्या यह महज भीड़ जुटाने का प्रयास है, या फिर इन पत्रकारों को मौन रूप से पत्रकारिता का अधिकार दिया जा रहा है? यह स्थिति रहस्यमयी बनी हुई है।
जानकारी के अनुसार, अंबेडकरनगर जनपद में मान्यता प्राप्त पत्रकारों की संख्या सीमित है, जबकि गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों की संख्या कहीं अधिक है। ऐसे में, यदि गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को खबर कवरेज से वंचित किया जाता है, तो क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संविधान प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन नहीं?
कानूनी स्थिति और पत्रकारिता का अधिकार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(क) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जिसमें पत्रकारिता भी शामिल है। विशेषज्ञों का कहना है कि पत्रकारिता के लिए किसी मान्यता की अनिवार्यता नहीं है। प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) या राज्य सरकार द्वारा मान्यता केवल अतिरिक्त सुविधाओं, जैसे सरकारी भवनों में प्रवेश या विशेष आयोजनों में भागीदारी के लिए दी जाती है। फिर भी, गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सरकारी संस्थानों में कवरेज से रोकने का कोई स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं है।
पत्रकारों की मांग:स्पष्टता और सुरक्षा
गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों का कहना है कि यदि उन्हें सरकारी संस्थानों में कवरेज की अनुमति नहीं है, तो प्रशासन को इन संस्थानों की सूची और नियम स्पष्ट करने चाहिए। साथ ही, फर्जी मुकदमों से बचाने के लिए पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। एक स्थानीय पत्रकार ने कहा, “हम जनता की आवाज उठाते हैं। यदि हमें कवरेज से रोका जाएगा, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा है।”
क्षेत्राधिकारी से अपील
पत्रकार समुदाय ने क्षेत्राधिकारी अनूप कुमार सिंह से मांग की है कि वे सरकारी संस्थानों की परिभाषा स्पष्ट करें और गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों के खबर कवरेज के अधिकारों की सीमा निर्धारित करें। इससे न केवल पत्रकारों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में आसानी होगी, बल्कि अनावश्यक विवादों और फर्जी मुकदमों से भी बचा जा सकेगा।
निष्कर्ष
यह मामला न केवल पत्रकारिता के अधिकारों, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही का भी सवाल उठाता है। जब तक सरकारी संस्थानों की परिभाषा और गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों के अधिकारों पर स्पष्टता नहीं आती, तब तक ऐसे विवाद बने रहेंगे। प्रशासन और पत्रकार समुदाय को मिलकर इस मुद्दे का समाधान निकालना होगा, ताकि पत्रकारिता का मूल उद्देश्य—सत्य को जनता तक पहुंचाना—प्रभावित न हो।