कृष्ण, देवल ब्यूरो, अंबेडकर नगर ।पुलिस के नाम पर वीडियो बनाकर अपने निजी स्वार्थ की रोटी सेंकने वालों की अब पोल खुलती नजर आ रही है। राजेसुल्तानपुर थाने में तैनात उप निरीक्षक जंगेज़ खान को घूसखोरी में फंसाने की कोशिश उस वक्त फुस्स हो गई जब पूरे मामले की तह तक पहुंची पुलिस अधीक्षक कार्यालय की जांच रिपोर्ट सामने आई।पूरा मामला जमीन के लेन-देन से जुड़ा था, जहां शनि गौड़ पुत्र रामलाल व उनके पांच पट्टीदारों ने अंगद गुप्ता पर ₹1 लाख बकाया न चुकाने का आरोप लगाया था। पुलिस ने नियमानुसार दोनों पक्षों को थाने में बुलाया, तिथि तय की गई, और 31 जुलाई को दोनों पक्ष गांव के संभ्रांत लोगों की मौजूदगी में आमने-सामने बैठे। वहीं पर नगद भुगतान हुआ, शपथ पत्र बने और मामला सुलझ गया।लेकिन तभी शुरू हुआ असली खेल – वायरल करने वाले मीडिया कर्मी ने चुपके से वीडियो बनाया, फिर उसे इस तरह वायरल किया कि लगे जैसे थाने में पैसे की अदला-बदली 'घूस' के रूप में हो रही हो!जब समझौता थाने में हुआ, सब कुछ खुलेआम हुआ, तो छिपकर वीडियो बनाने की जरूरत किसे और क्यों पड़ी? क्या अब हर समझौते को घूस बताकर वायरल करने का नया धंधा शुरू हो गया है?क्या पुलिस को बदनाम करने की इस साजिश के पीछे कोई 'भूख मिटाओ पत्रकारिता' का एजेंडा चल रहा है?इस पूरे मामले पर एक वरिष्ठ नागरिक ने दो टूक कहा – "जब स्वार्थ नहीं सधता तो ऐसे कुछ लोग पत्रकार की आड़ लेकर वीडियो बनाकर अफवाह उड़ाते हैं। ऐसे लोग न केवल पुलिस तंत्र को बल्कि पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे को भी बदनाम कर रहे हैं।"
सच्चाई तो ये है कि जंगेज़ खान ने नियमानुसार दोनों पक्षों को बुलवाया, निपटारा कराया, और पूरी प्रक्रिया पारदर्शी रही। लेकिन सोशल मीडिया पर चलाए गए "कट-पेस्ट पत्रकारिता" के इस खेल ने यह दिखा दिया कि अब कुछ लोगों के लिए कैमरा ‘सत्य’ नहीं, बल्कि ‘साजिश’ का हथियार बन गया है।