देवल संवाददाता, बूढनपुर (आजमगढ़)। पूर्वाचल का प्रसिद्ध ऐतिहासिक गोविंद साहब का मेला प्रशासनिक खामियों के चलते समय से पहले ही समाप्ति की ओर है। श्रद्धालु जिस तालाब में स्थान करने के बाद खिच्चड़ चढ़ाते हैं, वह काई और कीचड़ से पटा है। मेले से जुडाव रखने वालों में प्रशासन कौं कारगुजारी के प्रति गुस्सा है। मनोरंजन के साधन थियेटर, ड्रामा आदि की अनुमति नहीं दिए जाने से इस साल मेले की रौनकता गायब रही। श्रद्धालु आ तो जरूर रहे हैं, लेकिन मेले में स्कने की बजाए वापस चले जा रहे हूँ। आजमगढ़ और अंबेडकरनगर जिले के बार्डर पर लगने वाले गोविंद साहब के' ऐतिहासिक मेले की साफ-सफाई भी प्रशासनिक लापरवाही के चलते दुर्व्यवस्था की भेंट चढ़ गई। मेला शुरू हुए दस दिन भी नहीं बीता कि चारो तरफ गंदगी का साम्राज्य नजर आ रहा है। मेले की महत्ता को समेटे गोविंद व सरोवर (पोखरा) कीचड़ और काई से पटा पड़ा है। ऐसे में चर्म रोगों के भय से इसमें डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफी गिरावट आ गई है। मिठाइयों के नाम पर खजला ही शेष बचा है। ये भी दुकानदार बिकी कम होने का रोना रो कर मेले से अपना तंबू उखाड़ रहे हैं। गोविंद साहब का मेला अम्रहन मास की दशमी से मकर संक्रांति तक चलता है। हर दिन दस हजार से अधिक श्रद्धालुओं, का रेला लगता है। लोगों की भीड़ मेले में सर्कस, झूला, थियेटर, सिनेमा आदि का लुत्फ उठाती थी। फैजाबाद जिले के देवगढ़ से मेले में आए सुरेंश सिंह, विपिन सिंह ने बताया कि इस बार में ले की रौनक गायब है। गाजीपुर से आए पवन कुमार का कहना है कि थियेटर और नाच-गाना का प्रोग्राम बंद करके प्रशासन ने मेले का मंजा बेकार कर दिया। पवन ने कहा कि उनके साथ 15'लोग कई वर्षों से मेले में आते हैं। पहले दो दिन तक रुकते थे। इस बार पहले दिन ही वापस हो रहे हैं। घोड़ा, भैंस सहित अन्य जानवरों के व्यापारियों ने बताया कि अब तक सिर्फ एक घोड़ा तथा छह भैंस ही के तहत अनुमति नहीं बिक सकी है। इसलिए इस वर्ष मेले का पशुबाजार भी फीका है। खज़ला व्यवसायी पन्नालाल की दुकान पर बैठे विक्रेताओं और मुनीबों का. कहना है कि उनका धंधा भी मंदा है। सज चुकें रंगीला, से शनी, बिल्लो रानी नामक गाना रंगोली परमीशन ने मिलने के चलते अब उजड़ रहे हैं। बिहार के थियेटर शोभा सम्राट को अंबेडकरनगर जिले के प्रशासन ने एक भी दिन नहीं चलने दिया। थियेटर मालिक सम्राट ज्ञान ठाकुर के मुताबिक वे एक लाख रुपये जमीन के किराए के रूप में अब तक प्रशासन को दे चुके हैं। एक सैकड़ा से अधिक कर्मचारी 15 दिन से बैठकर काम की अनुमति मिलने का इंतजार कर रहे हैं। लोगों का आरोप है कि प्रशासन की कारगुजारी के चलते 14 जनवरी की बजाए मेला दिसंबर मांह में ही उखड़ने लगा है। मेला प्रभारी एसडीएम आलापुर रामप्र सिद्ध पांडेय और थानाध्यक्ष आलापुर डीएन पांडेय ने बताया कि प्रशासन किसी भी दशा में शांतिपूर्ण ढंग से मेला संपन्न कराना चाहता है। इसी दी गई।