कृष्ण, देवल ब्यूरो, अंबेडकर नगर ।भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका जीता-जागता उदाहरण उप संभागीय परिवहन कार्यालय है। यहाँ का नज़ारा देख कोई भी कह देगा – “काम नहीं, दलाल का नाम ही पहचान है।”भले ही सरकार ने तमाम सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया हो, लेकिन हकीकत यह है कि इस दफ्तर में बिना चढ़ावा दिए पत्ता तक नहीं हिलता। जो आम आदमी सीधे लाइन में लगकर काम कराना चाहता है, उसका दिन तो जाता है – लेकिन काम नहीं होता। वहीं दलाल के साथ खड़ा आदमी मुस्कुराता हुआ फाइल लेकर बाहर निकलता है।लोगों का कहना है कि यह दफ्तर “डिजिटल इंडिया” नहीं बल्कि “दलाल इंडिया” का जीता-जागता नमूना है। यहाँ फाइलें रुपये देखकर उड़ती हैं, नियम सिर्फ कागज़ पर लिखे हैं और ईमानदारी ताले में बंद है।विडंबना यह कि अधिकारी हर शिकायत पर कहते हैं – “ऑनलाइन कीजिए, सब पारदर्शी है।” लेकिन असलियत यह है कि पारदर्शिता सिर्फ दलालों की जेब में दिखती है। जनता पूछ रही है – जब सबकुछ ऑनलाइन है, तो ये दलाल किसके आशीर्वाद से फल-फूल रहे हैं?फिलहाल जवाब किसी के पास नहीं, लेकिन सच यही है –
यहाँ लाइसेंस से लेकर गाड़ी तक सब मिलता है, बस दाम सही होने चाहिए।