देवल संवाददाता, आजमगढ़। विश्व स्तनपान दिवस के अवसर पर जिला महिला अस्पताल में एक जागरूकता कार्यक्रम (स्तनपान विकल्प, नहीं हमारी जिम्मेदारी है) का आयोजन किया गया, जिसमें मां के दूध के महत्व और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए इसके लाभों को रेखांकित किया गया। इस कार्यक्रम में नर्सिंग छात्राओं ने एक लघु नाटक प्रस्तुत किया, जिसने उपस्थित लोगों का ध्यान आकर्षित किया। नाटक में एक महिला के गर्भधारण से लेकर प्रसव तक की यात्रा को दर्शाया गया, जिसमें विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया गया कि जन्म के बाद पहले छ: माह तक शिशु को केवल मां का दूध ही पिलाना चाहिए। इसके साथ ही, दो वर्ष तक लगातार स्तनपान कराने के महत्व और इससे शिशु के शारीरिक व मानसिक विकास में होने वाले लाभों को भी रेखांकित किया गया।
नाटक के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि मां का दूध शिशु के लिए संपूर्ण आहार है, जो न केवल उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है, बल्कि मां और शिशु के बीच भावनात्मक बंधन को भी गहरा करता है। कार्यक्रम में मौजूद मरीजों के परिजनों ने इस प्रस्तुति को बड़े उत्साह और कौतूहल के साथ देखा। उन्होंने नाटक के माध्यम से दिए गए संदेश को न केवल स्वीकार किया, बल्कि इसे अन्य लोगों तक पहुंचाने का संकल्प भी लिया। कार्यक्रम के दौरान अस्पताल में भर्ती एक प्रसूता ने भी मां के दूध के महत्व को दर्शाने वाली चार पंक्तियों की कविता सुनाई। इस कविता ने शिशु के स्वास्थ्य और उसके उज्जवल भविष्य के लिए मां के दूध की आवश्यकता को रेखांकित किया। उनकी यह प्रस्तुति उपस्थित लोगों के लिए प्रेरणादायी रही और मां के दूध के महत्व को और भी प्रभावी ढंग से समझाने में सहायक सिद्ध हुई।
कार्यक्रम में मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. विनय कुमार सिंह यादव ने स्तनपान से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा, "स्तनपान को लेकर समाज में कई भ्रांतियां प्रचलित हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। आमतौर पर प्रसव के बाद पहले छ: माह तक मां को मासिक धर्म नहीं होता, और इस दौरान शिशु द्वारा किया गया स्तनपान मां के स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी होता है। यह मां को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में मदद करता है।" डॉ. यादव ने यह भी बताया कि कई बार परिवार के लोग नवजात को मां से दूर रखकर उसका ध्यान अपने पास रखते हैं, जिसके कारण मां और शिशु के बीच स्तनपान की प्रक्रिया प्रभावित होती है। उन्होंने सलाह दी कि जन्म के बाद शिशु को अधिक से अधिक समय मां के पास रहने देना चाहिए। मां की शारीरिक गर्मी शिशु को सुरक्षित महसूस कराती है और वह बार-बार दूध पीने की कोशिश करता है, जिससे मां के शरीर में दूध बनने की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिलता है। उन्होंने माताओं को सुझाव दिया कि वे इस धारणा से बचें कि शिशु केवल रोने पर ही भूखा होता है। इसके बजाय, समय-समय पर शिशु को दूध पिलाते रहना चाहिए, ताकि उसकी पोषण संबंधी जरूरतें पूरी हो सकें। मां का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है, जो उसे कई बीमारियों से बचाने में सहायक होता है।