देवल, ब्यूरो चीफ,सोनभद्र। चार राज्यों की सीमा से सटे जनपद सोनभद्र के घोरावल तहसील क्षेत्र में स्थित शिवद्वार धाम धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से जाना जाता है। यहां विराजमान भगवान उमा महेश्वर के दर्शन-पूजन मात्र से श्रद्धालुओं की सारी मनोकामना पूरी होती है। प्रतिदिन उमा महेश्वर के दर्शन-पूजन के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं का हुजुम उमड़ता है। श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ के भक्तों की संख्या बढ़कर लाखों में पहुंच जाती है। कांवड़िए नाचते-गाते उमा महेश्वर के दरबार में पहुंच कर जलाभिषेक करते हैं। इसी लिए इसे गुप्त काशी के नाम से भी जाना जाता है।
गुप्त काशी शिवद्वारा धाम में विराजमान भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा अलौकीक है। यहां भगवान प्रणय मुद्रा में विराजमान हैं। मूर्ति काले पत्थर से बनी हुई है। भगवान शंकर के पैर पर माता गौरी विराजमान हैं। भगवान शिव चतुर्भुज रूप में हैं। उनके एक हाथ में त्रिशूल है। दूसरे हांथ से वे माता जी के मुख को स्पर्श किए हुए हैं। तीसरे हांथ से दर्पण दिखा रहे हैं, तो वहीं चतुर्थ हांथ से माता जी के बांह को पकड़े हुए हैं। ऐसी अद्भूत प्रतिमा देखकर छबि चित्त में बस जाता है और दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है। श्रावण मास में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार राज्य से भारी संख्या में श्रद्धालु बाबा उमा महेश्वर के दर्शन-पूजन को पहुंचते हैं। मिर्जापुर से कांवड़िए गंगा नदी के बरियाघाट व सोनभद्र के विजयगढ़ दुर्ग स्थित राम सरोवर तालाब से जलभर कर गुप्त काशी शिवद्वार धाम में जलाभिषेक को जाते हैं। खास बात तो यह है कि सोनभद्र के विजयगढ़ दुर्ग से शिवद्वार धाम की दूरी करीब 70 किमी है। कुछ रास्ते उबड़-खाबड़ व पथरिले हैं, बावजूद इसके कांवर लेकर कांवड़िएं नंगे पांव 48 घंटे के भीतर बाबा के नगरी में पहुंचते हैं। इसी तरह मिर्जापुर के बरियाघाट से करीब 65 किमी की दूरी नंगे पाव कांवड़िए तय करते हैं। मान्यता है कि श्रावण मास में जो भी भक्त सच्चे मन से कांवड़ लेकर यहां जलाभिषेक को पहुंचता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।