कृष्ण, देवल ब्यूरो, अंबेडकर नगर ।जनपद अम्बेडकरनगर में राजस्व विभाग एक बार फिर विवादों में घिर गया है। विभाग द्वारा किए जा रहे अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई को लेकर पक्षपात के गंभीर आरोप सामने आए हैं। लोगों का कहना है कि विभाग का रवैया "अपनों पर रहम, गैरों पर सितम" जैसा होता जा रहा है। तहसील स्तर से लेकर गांव तक एसडीएम, लेखपाल, व कानूनगो राम नारायण गौड़ की भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
*152 की कार्रवाई पर बढ़ा विवाद*
हरैया ग्राम पंचायत में आबादी की जमीन पर निर्मित 25 वर्ष पुराने उपली के घर (जिसके नीचे पानी का सोखता) तथा चैंबर बना हुआ था। धारा 152 के अंतर्गत हटवा दिया गया। राजस्व विभाग ने यह कार्रवाई बेदखली आदेश के तहत की, लेकिन इस प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर अब स्थानीय स्तर पर रोष व्याप्त है।
जमीन के कब्जाधारी का आरोप है कि उन्हें 2 जुलाई 2025 की शाम को नोटिस मिला, 3 जुलाई को सुनवाई हुई, उसी दिन उन्होंने आपत्ति भी दर्ज की, लेकिन टांडा एसडीएम ने कोई सुनवाई नहीं की और उसी दिन बेदखली आदेश पारित कर दिया। 8 जुलाई को राजस्व टीम मौके पर पहुंच गई और निर्माण को ध्वस्त कर दिया गया जिसकी कोई सूचना या आदेश की कॉपी विपक्षी को उपलब्ध नहीं कराई गई।
स्थानीय लोगों का सवाल है कि यदि विभाग इतनी तेजी से कार्रवाई कर सकता है, तो फिर कई वर्षों से लंबित फाइलों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या ऐसे आदेश अन्य मामलों में भी लागू होंगे, या फिर यह केवल चुनिंदा लोगों के विरुद्ध ही सख्ती दिखाने की नीति है?
*खंडजे की असमान चौड़ाई भी विवाद में*
गांव में बनाए गए खड़ंजे को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। आसपास के ही कुछ घरों के सामने खड़ंजा 5 फुट का, तो कहीं 6 से 7 फुट चौड़ा बनाया गया है। यदि निर्माण ग्राम प्रधान द्वारा सरकारी एस्टीमेट के अनुसार कराया गया था, तो फिर इतनी असमानता क्यों? क्या किसी एक व्यक्ति को ही अतिक्रमण का दोषी ठहराना न्यायसंगत है?
*प्रक्रिया और निष्पक्षता पर उठे सवाल*
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस पूरे मामले में मौके का दोबारा निरीक्षण नहीं किया गया और संबंधित पक्ष को समुचित रूप से सुना भी नहीं गया। ऐसे में कार्रवाई की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
*बसखारी में अधूरी कार्रवाई*
इसी तरह का एक और मामला बसखारी मुख्य बाजार क्षेत्र में सामने आया, जहां तालाब की जमीन पर हुए अतिक्रमण को हटाने पहुंची राजस्व टीम को कब्जाधारी के आश्वासन पर कार्यवाही रोकनी पड़ी। सवाल यह उठ रहा है कि जब पहले ही नोटिस दिया जा चुका था, तो फिर मौके पर जाकर खाली आश्वासन पर लौटना प्रशासन की सख्ती या महज़ औपचारिकता?
*जनता में आक्रोश, मांग रही पारदर्शिता*
राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए ग्रामीणों का कहना है कि अतिक्रमण हटाना सराहनीय कदम है, लेकिन कार्रवाई में समानता और पारदर्शिता होनी चाहिए। न केवल प्रशासन की साख पर असर पड़ता है, बल्कि जनता का भरोसा भी डगमगाने लगता है।
सरकारी भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराना प्रशासन की प्राथमिकता है, लेकिन यह कार्य निष्पक्षता और कानून सम्मत तरीके से ही विश्वसनीय बनेगा। यदि विभाग सभी मामलों में समान तत्परता और पारदर्शिता दिखाए, तो यह वाकई “सबका साथ, सबका विकास” का उदाहरण बन सकता है।_