कृष्ण, देवल ब्यूरो, अंबेडकर नगर ।टांडा में 90 करोड़ रुपये खर्च कर बना मातृ एवं शिशु चिकित्सालय आज ‘कागजों में सुपरस्पेशलिटी, हकीकत में सिर्फ दीवारें’ बनकर रह गया है। 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हरी झंडी दिखाई थी, उम्मीद थी कि टांडा के लोग बड़े शहरों जैसा इलाज पाएंगे — लेकिन हकीकत यह है कि महिला और बाल रोग के लिए एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है।गर्भवती महिलाओं का इलाज सीएचसी के डॉ. रंजीत वर्मा के भरोसे, बच्चों की सेहत सीएचसी के डॉ. चंद्रमणि के जिम्मे — बाकी करोड़ों की बिल्डिंग में मरीज खुद ही उम्मीद का इलाज कर रहे हैं। हालात इतने कड़वे हैं कि रेडियोलॉजिस्ट से लेकर पैथोलॉजिस्ट तक का पद खाली पड़ा है। अस्पताल के अंदर एसी तो हैं, लेकिन डॉक्टर नहीं!
*हर दिन लाइन, इलाज राम भरोसे*
करीब दो लाख की आबादी वाला टांडा आज भी इसी अस्पताल से आस लगाए बैठा है। रोज 200 से 300 मरीज ओपीडी में लाइन लगाते हैं, चार से पांच प्रसव भी होते हैं — मगर डॉक्टरों की तैनाती ‘जीरो’। स्टाफ नर्सों के 54 पदों में आधे खाली, नियोनेटोलॉजी नर्स एक भी नहीं।कहीं बजट खा गई फाइलें!
कहने को तो अस्पताल में सभी आधुनिक सुविधाएं हैं — पर चलाए कौन? जिन डॉक्टरों की तैनाती हुई थी, वे जॉइन ही नहीं कर पाए। नतीजा — करोड़ों खर्च कर भी सरकार अब सिर्फ खानापूर्ति कर रही है। सीएमएस डॉ. अरविंद कुमार राय भी साफ कह चुके हैं कि अफसरों को कई बार हाल बताया, लेकिन शायद फाइलों ने ही सब चुप करा दिया।‘अस्पताल में मशीनें हैं, डॉक्टर नहीं — इलाज है, पर डॉक्टर नहीं — टांडा का अस्पताल बना मजाक का अस्पताल!’