कृष्ण, देवल ब्यूरो, अंबेडकर नगर ।भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की ओर से मजदूर दिवस 1 मई पर सिकरौरा कंचनपुर गांव में नुक्कड़ सभा की गयी।
पार्टी के बिंद्रेश ने बताया कि मेहनतकशों की एक बड़ी आबादी को मजदूर दिवस के गौरवशाली इतिहास के बारे में पता ही नहीं है। 19वीं शताब्दी में मेहनतकश वर्ग के काम के घण्टे तय नहीं थे। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के नियम के मुताबिक काम करना पड़ता था। स्थिति यह थी कि कभी-कभी काम के घंटे 16 से 18 पहुंच जाते थे। जानवरों की तरह खटने के ख़िलाफ़ दुनिया में कई देशों में मेहनतकशों ने अपना प्रतिरोध दर्ज़ करना शुरू किया लेकिन अमेरिका में आन्दोलन 1880 तक काफी जोर पकड़ चुका था। 8 घंटे काम की समितियों के नेतृत्व में 8 घण्टे काम, 8 घण्टे मनोरंजन, 8 घण्टे आराम के नारे के इर्द-गिर्द शिकागो के मजदूरों ने 1 मई 1886 के दिन को आम हड़ताल का दिन तय किया। इसके बाद मजदूरों का बार-बार दमन हुआ और चार मजदूर नेताओं को मौत की सज़ा दे दी गयी। इन्हीं संघर्षों के बाद दौलत आज पूरी दुनिया भर में 8 घण्टे काम का नियम लागू हो पाया।
पार्टी के मित्रसेन ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति आज बहुत ख़राब है। ना तो न्यूनतम वेतन जैसा कोई प्रावधान है और ना ही उनकी सुरक्षा के लिए अन्य कोई श्रम क़ानून। खेतों से लेकर निर्माण और ईंट भट्ठा सहित तमाम उद्योगों पर काम करने वाले मज़दूरों के साथ आये दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं लेकिन इन पर कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। ग्रामीण मज़दूरों के लिए कहने के लिए तो मनरेगा जैसी योजना है लेकिन फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा साल दर साल इसके बजट में कटौती कर इसे एकदम निष्प्रभावी बनाया जा चुका है। मनरेगा के जरिये साल में 100 तो क्या 30-35 दिन भी काम नहीं मिल पा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास से लेकर जीवन की तमाम बुनियादी सुविधाएं भी इस आबादी को नसीब नहीं होती। इलाके में आगजनी और बाढ़ जैसी विभीषिकाओं का भी शिकार सबसे ज्यादा यही आबादी बनती है। इतना ही नहीं, इलाके में बहत सारे लोग ऐसे भी हैं जो बाहर जाकर मज़दूरी करते समय बीमारी या दुर्घटना के शिकार हो चुके हैं और अब वापस आकर नारकीय जीवन जी रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के कुल मजदूरों के 90 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्से को आठ घण्टे का कार्यदिवस हासिल नहीं है। न ही इन मज़दूरों को पीएफ़, ईएसआई, पेंशन, बोनस, स्वैच्छिक ओवरटाइम व ओवरटाइम के डबल रेट से भुगतान आदि जैसे श्रम अधिकार प्राप्त हैं।
मई दिवस की विरासत से प्रेरणा लेकर इसके ख़िलाफ़ लड़ने के लिए आगे आना होगा।
कार्यक्रम में रामधनी, शिवासरे, मानधाता, रिंकू, अच्छेलाल, प्रकाश आदि लोग मौजूद रहे।