देवल संवाददाता, गोरखपुर ।संसद में वक्फ बिल को लेकर हो रही बहस के बीच गोरखपुर में भी वक्फ संपत्तियों ( मुसलमानों द्वारा धार्मिक कार्य के लिए दान की गई संपत्ति) पर चर्चा छिड़ गई है। बताया जा रहा है कि यहां कुल 1446 संपत्तियां हैं। इसमें से 1444 संपत्ति सुन्नी वक्फ की और केवल दो संपत्तियां शिया वक्फ की है।
हालांकि, इनमें से अधिकांश पर बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों का निर्माण हो चुका है। जबकि, वक्फ की गई संपत्तियों का उपयोग सामाजिक कार्यों के लिए ही होना चाहिए। देश में 1952 में जमींदारी एक्ट लागू हुआ था। इसके बाद 1954 में पहला वक्फ अधिनियम बनाया गया। इसी के तहत वक्फ बोर्ड का गठन किया गया था।
इसका मकसद वक्फ के कामकाज को सरल बनाना था। 1955 में पहला संशोधन किया गया। वक्फ मामलों के अच्छे जानकार शहर के एक अधिवक्ता ने बताया कि जमींदारी उन्मूलन एक्ट लागू होने के बाद कुछ लोगों ने अपनी 12.5 एकड़ से अधिक जमीन को वक्फ घोषित कर दिया।
बाद में कागजों में हेर फेर कर इस पर अपना स्वामित्व बताते हुए बेच भी दिया। इतना ही नहीं गलत तरीके से वक्फ की वास्तविक जमीनों का भी व्यावसायीकरण कर दिया गया। राजस्व विभाग के एक जानकार बताते हैं कि शहर में वक्फ की अधिकांश जमीनों पर पक्के मकान बना लिए गए हैं।
जबकि इन जमीनों का उपयोग केवल धार्मिक या सामाजिक कार्यों के लिए ही किया जा सकता है। सीलिंग और नजूल के खिलाड़ियों ने वक्फ की जमीन की असली नवैयत छिपाकर प्लाटिंग कर बैनामा कर दिया। कई विवाद जिला प्रशासन और न्यायालयों में आज भी लंबित है।वक्फ की संपत्ति पर दान करने वाले का नहीं होता अधिकार
वक्फ कोई भी ऐसी चल या अचल संपत्ति हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला 18 साल से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति सिर्फ धार्मिक कार्यों के लिए दान करता है। लेकिन, यह सिर्फ वही संपत्ति हो सकती है, जो खानदानी हो या या निजी स्वामित्व की हो।
ऐसे में इस संपत्ति को वक्फ के जरिए दान की गई संपत्ति घोषित कर दिया जाता। दान की हुई इस संपत्ति का मालिक अल्लाह को माना जाता है। ऐसे में वक्फ करने वाले के खानदान या वारिसों का उस पर कोई अधिकार नहीं रह जाता। इस संपत्ति के रख रखाव के लिए संस्था बनाई जाती है। मुतवल्ली बतौर मैनेजर वक्फ की संपत्ति का रखरखाव करता है।
अपनी ही जमीन को वक्फ के जरिए हथिया लिया: 1857 की क्रांति में मारे गए भारतीयों की जमीनों को तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने अपने कब्जे में ले लिया। इन्हीं जमीनों को बाद में जमींदारों को खेती के लिए दी गई और लगान सरकार के खाते में जमा कराया गया। 1950 में जमींदारी उन्मूलन एक्ट आया तो अंग्रेजी हुकूमत से मिली जमीनों को जमींदारों ने वक्फ करवा दिया। बाद में इसे अपना बताते हुए बेच दिया