देवल संवादाता,आजमगढ़। प्रयागराज में चल रहे दिव्य महाकुंभ के भव्य आयोजन में अलग-अलग पंडालों में देशभर के नामचीन कलाकारों को आमंत्रित किया गया। इस कड़ी में उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ के संयोजन में 45 दिनों तक चलने वाले नाट्य समारोह में विगत 8 फरवरी 2025 को आज़मगढ़ जनपद के प्रसिद्ध नाट्य दल सूत्रधार संस्थान आजमगढ़ द्वारा 1868 ई.में लिखे गए हिंदी के प्रथम नाटक पंडित शीतला प्रसाद त्रिपाठी रचित 'जानकी मंगल' का भावपूर्ण मंचन महाकुंभ परिसर स्थित अहिल्याबाई होलकर सभागार में किया गया ।अभिनेता दल के सधे हुए अभिनय और प्रसिद्ध रंग संगीतज्ञ संजय उपाध्याय द्वारा रचित सुमधुर संगीत की धुनों ने इस नाटक को भव्यता प्रदान की।नाटक की कथावस्तु सीता स्वयंवर पर आधारित है जहां राम द्वारा शिव धनुष तोड़ने पर परशुराम क्रोधित हो जाते हैं और शिव के इस अपमान का बदला धनुष तोड़ने वाले का वध कर लेना चाहते हैं जहां लक्ष्मण से उनका बहुत ही कटु संवाद होता है अंत में राम के विचारवान बातों से प्रभावित होकर परशुराम का क्रोध शांत होता है इस प्रकार इस नाटक का अंत होता है इस नाटक में गति संचालन व नृत्य परिकल्पना प्रसिद्ध कोरियोग्राफर भूमिकेश्वर सिंह का रहा। राम की भूमिका में गोपाल मिश्रा सीता की भूमिका में रिया गौड़ लक्ष्मण की भूमिका में सूरज यादव परशुराम की भूमिका में राहुल यादव रावण की भूमिका में संदीप गौड़ बाणासुर की भूमिका में विजय यादव जनक की भूमिका में अंगद कश्यप सुनैना की भूमिका में डॉक्टर अलका सिंह अन्य राजाओं की भूमिका में अनादी अभिषेक आदित्य अभिषेक हार्दिक सूरज सहगल गोपाल चौहान व सीता की सहेलियों की भूमिका में समृद्धि प्रीति व दिव्या प्रमुख रूप ने सराहनी अभिनय कर दर्शकों को मंत्र मुग्ध किया।
नट हर्ष कुमार और नाटक नेहा रिद्धि मित्रा के गीत नृत्य ने नाटक को गति प्रदान किया। इस नाटक का निर्देशन राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त निर्देशक अभिषेक पंडित ने किया इसी कड़ी में 15 फरवरी को उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र प्रयागराज द्वारा आयोजित नाट्य समारोह में ममता पंडित के निर्देशन में सूत्रधार आजमगढ़ द्वारा फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी पहलवान की ढोलक का मंचन किया गया यह कहानी लुट्टन पहलवान नाम के चरित्र के इर्द-गिर्द बुनीगई है जिसे बचपन से ही पहलवानी और ढोलक बजाने का शौक है स्थानीय जमीदार उसे संरक्षण देता है लेकिन जमीदार के मर जाने के बाद उसके पुत्रों को लगता है की लोकतन पहलवान की कला के लिए दिया जा रहा आर्थिक सहयोग बेफिजूल का खर्च है लिहाजा लोकतन पहलवान को मिलने वाला आर्थिक सहयोग बंद कर दिया जाता है इसी बीच गांव में प्लेग की महामारी फैलती है जिसमें पूरा गांव रोज मर रहा है धीरे-धीरे पहलवान के दोनों पुत्र भी मर जाते हैं और लुट्टन पहलवान भी।इस प्रकार इस नाटक का कारुणिक अंत होता है इस भावपूर्ण कहानी में तीन मुख्य अभिनेताओं ने अपना अभिनय कौशल दिखाया जिनके नाम क्रमशः सूरज यादव सत्यम कुमार राहुल यादव है वेशभूषा नेहा रिद्धि मित्र ने किया प्रकाश रंजीत कुमार कर रहा संगीत संचालन गोपाल मिश्रा ने किया।