देवल संवादाता,चुनार,मिर्जापुर। स्थानीय तहसील में न्याय की परिभाषा अब पूरी तरह से बदल चुकी है। यहां, न्याय पाने के लिए फरियादियों को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं, जबकि प्रशासन और न्यायिक तंत्र पूरी तरह से नकारा हो चुका है। योगी आदित्यनाथ के शासन में जहाँ प्रशासनिक सुधारों की बातें की जा रही हैं, वहीं चुनार तहसील में न्यायिक प्रक्रिया इतनी लचर हो गई है कि नाजिर पद पर राजेंद्र प्रसाद मौर्या जैसे सरकारी माफिया खुलकर अपनी सत्ता चला रहे हैं। इस जंगलराज में फरियादी न्याय की आशा लिए भटकते हैं, लेकिन उन्हें केवल धोखा मिलता है।
नाजीर राजेंद्र प्रसाद मौर्या: सरकारी माफिया की अराजकता
चुनार तहसील में राजेंद्र प्रसाद मौर्या का शासन अब आतंक का रूप ले चुका है। नाजिर के पद पर बैठे मौर्या के पास न केवल प्रशासनिक सत्ता है, बल्कि वह एक सरकारी माफिया के रूप में अपने लाभ के लिए कानून और व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने में लगे हुए हैं। वह न केवल प्रशासनिक कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं, बल्कि न्यायालयीन मामलों में भी अपनी मनमर्जी चलाते हैं। अपने बाहुबल और प्रभाव का उपयोग करते हुए उन्होंने तहसील के सारे कामों को अपनी जंजीरों में जकड़ लिया है। फरियादी अपनी शिकायतें लेकर कई बार तहसील के अधिकारियों के पास जाते हैं, लेकिन मौर्या के दबदबे के आगे कोई भी अधिकारी बोलने की हिम्मत नहीं करता।
जंगलराज: फरियादियों के लिए न्याय एक सपना
चुनार तहसील में अब स्थिति यह हो गई है कि फरियादी न्याय की तलाश में हर गली, हर चौराहे पर भटक रहे हैं। एक फाइल से दूसरी फाइल में घूमते हुए वह महीनों और सालों तक किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाते। जब भी कोई मामला अदालत में दाखिल होता है, तो उसकी सुनवाई कभी होती नहीं। महीनों तक किसी मामले पर कोई निर्णय नहीं आता और यदि आता भी है, तो वह भ्रष्टाचार और रिश्वत के चलते ढेर सारी परेशानियों के बाद। भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाय, उसे अनदेखा करता है।
तहसील में सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच एक अव्यवस्थित और अराजक माहौल है। यहां पर वादी को हर छोटे काम के लिए रिश्वत देने की प्रथा बन चुकी है। कभी कुछ तो कभी कुछ और मांगने वाले कर्मचारी फरियादियों को भ्रमित करते रहते हैं। बिना रिश्वत दिए कोई भी काम नहीं होता और अगर किसी ने बिना भुगतान के अपनी समस्या उठाई, तो वह न्याय की बजाय प्रताड़ना का शिकार हो जाता है।
न्याय का दम घुटना: फाइलों का महीनों तक अटका रहना
यहां के अधिकारियों की लापरवाही इतनी ज्यादा है कि फाइलें एक टेबल से दूसरी टेबल तक जाने में महीनों तक फंसी रहती हैं। इसके बीच में किसी भी बाहर से आए कर्मचारी या मध्यस्थ का हाथ होता है, जो अपनी रकम ले कर फाइलों को आगे बढ़ाते हैं। यही कारण है कि यहां के फरियादी अपने मामलों के बारे में कोई आशा नहीं रखते। वे इस कदर निराश हो चुके हैं कि उनकी शिकायतों का निस्तारण कभी होता ही नहीं। इस स्थिति ने उन सभी फरियादियों की उम्मीदों को पूरी तरह से कुचल दिया है जो अपने छोटे-मोटे कामों के लिए प्रशासन से न्याय की उम्मीद करते थे।
संपूर्ण समाधान दिवस: एक दिखावा
वहीं दूसरी ओर,"संपूर्ण समाधान दिवस,जनता मुलाकात,आनलाइन -आईजीआरएस व उच्च अधिकारी के दुरभाषस अवगत कराया सहित " जैसे आयोजनों का यहाँ कोई असर नहीं होता। यह केवल एक दिखावा बनकर रह गए हैं। जब भी फरियादी अपनी समस्या लेकर समाधान दिवस में पहुंचते हैं, तो उनके मामलों को उठाया जाता है और फिर कुछ समय बाद उन्हें जवाब मिलता है कि "यह मामला किसी अन्य विभाग से संबंधित है" या फिर "अभी समाधान नहीं हो सकता है।" इसके बावजूद अधिकारियों द्वारा रिपोर्टों को निराधार और झूठा बना दिया जाता है। यह व्यवस्था केवल फरियादियों को धोखा देने का एक जरिया बन चुकी है, ताकि उच्च अधिकारियों को यह प्रतीत हो सके कि सभी मामलों का निस्तारण हो रहा है, जबकि हकीकत कुछ और ही होती है।
विधवाओं और कमजोर वर्गों पर बढ़ते अत्याचार
इस जंगलराज में सबसे ज्यादा शिकार वे लोग बन रहे हैं जो किसी न किसी कारणवश कमजोर हैं, जैसे कि विधवाएं या छोटे किसानों के परिवार। इनकी समस्याओं का कोई समाधान नहीं हो पाता। विधवाएं और अन्य ऐसे लोग जो अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं, वह महीनों तक बिना किसी सुनवाई के अपने मामलों के लिए भटकते रहते हैं। इस दौरान उन्हें हर एक टेबल से दूसरे टेबल पर भेज दिया जाता है, लेकिन फिर भी किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं होती।
न्याय की उम्मीदें खत्म होती जा रही हैं
चुनार तहसील में प्रशासन का यह अत्यंत लचर और भ्रष्ट तंत्र अब लोगों के लिए न केवल निराशा का कारण बन चुका है, बल्कि यह न्याय व्यवस्था की रीढ़ को भी तोड़ रहा है। यहां न्याय की मांग करने वाला हर व्यक्ति सिर्फ अपनी तकलीफों का रोना रोता रहता है, लेकिन न तो न्याय मिलता है और न ही कोई कारगर कार्रवाई होती है।
यह स्थिति गंभीर हो चुकी है और अब समय आ गया है कि उच्च अधिकारियों को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। यदि इस जंगलराज को नहीं रोका गया, तो न केवल प्रशासन की साख खराब होगी, बल्कि यह सिस्टम आम जनता के लिए और भी कष्टकारी हो जाएगा।
आखिरी सवाल: क्या यही है उत्तर प्रदेश सरकार का प्रशासन?
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भ्रष्टाचार और अन्याय को समाप्त करने की बात तो की जा रही है, लेकिन क्या यह बदलाव सिर्फ एक दिखावा है? क्या प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी इस जंगलराज को समाप्त करने के लिए गंभीर कदम उठाएंगे, या फिर फरियादियों को इसी तरह अपनी उम्मीदों का गला घोंटने दिया जाएगा?
*कहावत: "जहां जंगलराज होता है, वहां न्याय का हक कभी नहीं मिलता।"