देवल संवादाता,शिव की नगरी काशी को सर्वदेव और सर्व तीर्थों की नगरी यूं ही नहीं कहा जाता है। काशी में तीर्थराज प्रयागराज भी विराजमान हैं और माघ मास में श्रद्धालुओं को त्रिवेणी के पुण्यस्नान का फल भी देते हैं। घाट के तीर्थ पुरोहित भी प्रयागराज की तरह ही घाट पर आने वाले यजमानों का संकल्प कराते हैं। दशाश्वमेध घाट से उत्तर दिशा में प्रयाग तीर्थ विराजमान हैं।
काशी महात्म्य के अनुसार माघ मास में प्रयाग जाने का जो फल है वह प्रयाग तीर्थ में स्नान करने से दस गुना अधिक मिलता है। महाकुंभ के दौरान काशी में भी श्रद्धालु प्रयाग तीर्थ पर पुण्य की डुबकी लगाकर दान-पुण्य करेंगे। मान्यता है कि सूर्यग्रहण लगने पर कुरुक्षेत्र में दान करने से जो फल मिलता है, वही फल काशी में प्रयाग तीर्थ पर स्नान करने से दस गुणा अधिक मिलता है।
रघुवंश में भगवान राम सीता से कहते हैं कि समुद्रपत्योर्जलसन्निपाते पूतात्मनां यत्र किलाभिषेकात्। तत्त्वावबोधेन विनापि भूयस्तनुत्यजां नास्ति शरीरबन्धः...। यानी जहां गंगा उत्तरवाहिनी और यमुना पूर्ववाहिनी हैं, उस संगम पर पहुंचते ही मनुष्य को ब्रह्म हत्या के दोष से भी मुक्ति मिल जाती है।
प्रजापति क्षेत्र प्रयागराज में जो सब गुण कहे गए हैं वह सब अविमुक्त महाक्षेत्र में अनगिनत हो जाते हैं। काशी के प्रयाग तीर्थ पर सब कामनाओं को देने वाले प्रयागेश्वर महालिंग विराजमान हैं। उनके कारण ही वह तीर्थ कामद अर्थात कामनाओं को पूर्ण करने वाला कहा जाता है।
विशालाक्षी मंदिर के महंत राजनाथ तिवारी ने बताया कि सूर्य के मकर राशि में जाने के बाद माघ मास में जो लोग अरुणोदय के समय काशी के प्रयाग तीर्थ में स्नान करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रयाग तीर्थ पर माघ मास में स्नान से दस अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। प्रयाग तीर्थ पर स्नान करके भक्तिपूर्व प्रयागमाधव और प्रयागेश्वर का पूजन करने का विधान है।
अजय शर्मा ने बताया कि काशी खंड के अनुसार माघ में पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, नीचे और ऊपर के समस्त तीर्थ प्रयागराज चले जाते हैं लेकिन वाराणसी के तीर्थ, कहीं नहीं जाते हैं। सभी तीर्थ माघ मास में प्रयागेश्वर के पास प्रयागतीर्थ पर स्नान करते हैं और मध्याह्न बेला में मणिकर्णिका पर स्नान करने के लिए जाते हैं। दशाश्वमेध से उत्तर प्रयागतीर्थ में स्नान करके जो श्रद्धालु प्रयागमाधव रूप का दर्शन करता है, वह पापों से छूट जाता है।