कृष्ण, देवल ब्यूरो, अंबेडकर नगर ।
राजकीय मेडिकल कॉलेज समेत जिले के 42 सरकारी अस्पताल बिना एनओसी के चल रहे हैं। अग्निशमन विभाग से इनके द्वारा एनओसी नहीं ली जा सकी है। मेडिकल कॉलेज व चार सीएचसी ने वर्ष 2017 में एनओसी हासिल किया था, जो समाप्त हो चुकी है। अब सभी अस्पतालों के पास आग से बचाव को लेकर जरूरी प्रबंधों से जुड़ी एनओसी नहीं है। निश्चित रूप से इससे आग जैसे हादसों से निपटने को लेकर लापरवाही बरती जा रही है।झांसी राजकीय मेडिकल कॉलेज में आग से हुए हादसे के बाद भी स्वास्थ्य महकमा चेत नहीं रहा। कई अस्पतालों में बीते दिनों ही फायर ऑडिट फेल हो चुकी है। फायर टीम अक्सर अपनी रिपोर्ट भेजती है, लेकिन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाती। आग से बचाव के संसाधनों को बढ़ाने की तरफ तो जिला अस्पताल समेत मेडिकल काॅलेज में ध्यान दिया जा रहा, लेकिन एनओसी लेने की तरफ ध्यान नहीं है। यह हाल तब है जबकि मेडिकल कॉलेज में प्रतिदिन तीन हजार से अधिक मरीज व तीमारदार पहुंचते हैं, जबकि जिला अस्पताल में यह संख्या डेढ़ हजार के करीब है। अस्पतालों में आग से जुड़े हादसे सिर्फ गर्मी के मौसम में ही नहीं होते। सभी मौसम में आग लगने की संभावना अलग-अलग उपकरणों व परिस्थितियों के चलते बनी रहती है। ऐसे में मरीजों व तीमारदारों की जान सुरक्षा के लिए फायर से जुड़े सभी इंतजामों का पूरा होना अनिवार्य माना जाता है।जिला अस्पताल, राजकीय मेडिकल कॉलेज सद्दरपुर, मातृ शिशु विंग टांडा, मातृ शिशु विंग अकबरपुर समेत 29 पीएचसी व नौ सीएचसी में फायर एनओसी नहीं है। लापरवाही यह कि इनमें से ज्यादातर अस्पतालों ने फायर एनओसी के लिए आवेदन ही नहीं कर रखा है। हालांकि आग से बचाव के इंतजाम अस्पतालों में हैं। लेकिन मानक के अनुरूप व्यवस्था नहीं है।फायर एनओसी किसी अस्पताल में नहीं है। बीते दिनों कुछ अस्पतालों की जांच की गई थी। जो खामियां मिली थीं, उन्हें दूर करने के लिए पत्र दे दिया गया। अब एक बार फिर से यह देखा जाएगा कि संबंधित खामियों को दूर किया गया या नहीं। -जेपी सिंह, जिला अग्निशमन अधिकारी
सरकारी अस्पतालों में आग से बचाव के पर्याप्त इंतजाम हैं। अपने निरीक्षण में मेरे द्वारा इस पर भी ध्यान दिया जाता है। जहां तक बात एनओसी लेने की है, तो मुझे इसकी जानकारी नहीं है। यदि इसकी जरूरत है तो आवेदन कराकर इसे भी हासिल कराया जाएगा। कोई कमी है तो दूर होगी। -डाॅ. राजकुमार, सीएमओ