आमिर। ब्यूरो चीफ। देवल।सुइथाकला, जौनपुर। स्थानीय विकास खण्ड स्थित जहुरुद्दीनपुर गांव में चल रही सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के चतुर्थ दिवस पर श्रीमद्भागवत कथा व्यास श्री वैष्णव श्री नारायण स्वामी वाचस्पति जी महाराज ने उपस्थित श्रोताओं को ईश्वर के दो पूर्णावतार त्रेता युग में सूर्य वंश में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और द्वापर में चन्द्र वंश में लीला पुरूषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण के अवतार की कथा का रसपान कराया। कथा के क्रम में सरस कथा वाचक ने कहा कि भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों ईश्वर के पूर्णावतार थे। शेष सभी अवतार परमात्मा के अंशातार थे। भगवान श्रीकृष्ण और राम में कोई भेद नहीं था। एक बार श्रीराम भक्त रामकथा गायक तुलसीदास जी भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने प्रणाम करते हुए कहे कि- क्या छवि बरनौं आपकी भले बिराजो नाथ। तुलसी मस्तक तब झुकै जब धनुष बाण लौ हाथ।। गोस्वामी तुलसीदास की प्रार्थना सुनते ही भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति धनुष बाण धारण कर भगवान राम के रूप में सामने प्रकट हो गयी। कथा ब्यास स्वामी ने ईश्वर के प्रति तप और भक्ति में भक्ति की श्रेष्ठता बताते हुए कहा कि भक्ति स्वतन्त्र सकल गुन खानी। भक्ति की श्रेष्ठता के क्रम में उन्होंने कहा कि राजा अम्बरीष जी की भक्ति के सामने ऋषि दुर्वासा का तप तेजहीन हो गया। राजा अम्बरीष के एकादशी पारण से ऋषि दुर्वासा अपने को अपमानित समझते हुए राजा को नष्ट करने के लिए कृत्या को प्रकट कर दिया लेकिन भक्त के वश में भगवान राजा अम्बरीष की रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र रख दिये थे जिससे कोप से बचने के लिये ऋषि दुर्वासा को इन्द्रादि देवताओं की शरण में जाना पड़ा लेकिन उनकी रक्षा नहीं हो सकी। अन्ततः भगवान विष्णु के शरण में जाने के बाद ही ऋषि दुर्वासा चक्र सुदर्शन के कोप से मुक्त हो सके। कथा के समापन अवसर पर उपस्थित भक्तजन आरती लेकर प्रसाद ग्रहण किये। श्रीमद्भागवत कथा संयोजक मण्डल में शोभनाथ तिवारी, राजनाथ तिवारी, ओम प्रकाश तिवारी, जय प्रकाश तिवारी, राजकरन, हरिशंकर, विजयशंकर, ओंकार, उदयशंकर, राजेश कुमार, कमलेश, बृजेश, देवेश, राहुल, प्रियांशु, शिवांश, श्रेयांश, प्रायू सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।