अयोध्या के लिए जैसे ही उनका काफिला नेहरूनगर स्थित सरस्वती शिशु मंदिर से पैदल चलने लगा तो पुलिस ने उन्हे गिरफ्तार कर लिया। उस समय बलदेव राज शर्मा भाजपा के महामंत्री के पद पर कार्यरत थे। पुलिस सभी को लेकर पहले मेरठ स्थित अब्दुल्ला जेल पहुंची। यहां जेल हाउस फुल मिली तो अगली जेल मुजफ्फरनगर में पहुंचे।सहारनपुर जेल में रहकर जली-फुकी रोटी और कच्ची दाल खाकर डेढ़ महीने बिताने का अब कोई गम नहीं है। अयोध्या में निर्माणाधीन भव्य राम मंदिर में 22 जनवरी को होने जा रहे प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उपस्थित रहने की इच्छा को लेकर एक-एक दिन गिनने लगा हूं।यह कहना है पांच दिसंबर 1992 को गाजियाबाद से कार सेवक के रूप में गले में माला डालकर साथियों के साथ अयोध्या कूच करने वाले बलदेव राज शर्मा का।वह बताते हैं कि अयोध्या के लिए जैसे ही उनका काफिला नेहरूनगर स्थित सरस्वती शिशु मंदिर से पैदल चलने लगा तो पुलिस ने उन्हे गिरफ्तार कर लिया। उस समय बलदेव राज शर्मा भाजपा के महामंत्री के पद पर कार्यरत थे। पुलिस सभी को लेकर पहले मेरठ स्थित अब्दुल्ला जेल पहुंची। यहां जेल हाउस फुल मिली तो अगली जेल मुजफ्फरनगर में पहुंचे।यहां भी जेल प्रशासन ने लेने से इंकार कर दिया। शाम को आंदोलन कारी गाते-बजाते बस में सहारनपुर जेल पहुंचे। यहां पर जेल में प्रवेश करते समय जय श्री राम के नारों से पूरी जेल गूंज उठी।बलदेव बताते हैं कि उस समय जेल में बंद रहे तीन मुख्य साथी अब नहीं रहे हैं, लेकिन उनके दिलों में राम मंदिर को लेकर जो तूफान था वह अभी भी याद आता है। इनमें मुकेश त्यागी,जुगल किशोर और डॉ. मिश्रा शामिल थे। मुकेश त्यागी लंबे समय तक नगर निगम में पार्षद रहे और दो साल पहले उनका निधन हो गया।कान अयोध्या की खबरों पर और हाथ देखकर भविष्य बताने में गुजरा समय वह बताते हैं कि जेल में रहकर पल-पल सभी साथी अयोध्या में होने वाली गतिविधियों की खबरें कान लगाकर सुनते थे। यदि अखबार मिल जाता था तो उसके एक-एक शब्दों को पढ़कर ही दम लेते थे। इसके साथ ही जेल में अन्य साथियों का हाथ देखकर उनका भविष्य बताने में समय गुजारते थे।जेल में हाथ देखने वाले कार सेवक के रूप में खूब चर्चित हो गए। जेल के कई अधिकारी और बंदी रक्षक भी हाथ दिखाने लगे थे। हाथ देखने के लिए वह सिर्फ जय श्री राम का नारा लगवाते थे।हर तीसरे दिन जेल से घर वालों की खैर खबर लेने को लैंडलाइन फोन पर एक मिनट बात करने की अनुमति मिलती थी। फोन पर पत्नी से मैं कहता था कि कृष्णा जेल से बोल रहा हूं, तो कान में आने वाली आवाज से तन और मन प्रफुल्लित हो उठता था। कृष्णा बोलती थी जय श्री राम, आप संघर्ष करो मैं तुम्हारे साथ हूं। यह सुनकर घर से दूर होने का कतई दुख नहीं होता था। पांच बेटी और एक बेटे की देखभाल वह बखूबी करती रहीं।वह बताते हैं कि बचपन से ही रामलीला में मंचन करने और रामलीला का मंचन कराने का शौक रहा। कविनगर धार्मिक रामलीला समिति के आजीवन संरक्षक हैं। कहीं भी राम की कथा होती है तो जरूर शामिल होते हैं।शहर के पहले आर्किटेक्ट हैं बलदेव राज शर्मा शहर के पहले आर्किटेक्ट हैं। घर, कार्यालय , मार्केट के साथ मंदिर निर्माण के नक्शा बनाने के मास्टर हैं। उनकी इच्छा है कि राम मंदिर में अपना सहयोग किसी न किसी रूप में जरूर करूंगा।बलदेव राज शर्मा स्व.कल्याण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी के बेहद करीबी रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 2009 में यहां से लोकसभा चुनाव जीता तो उनके सांसद प्रतिनिधि रहे। भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के शीर्ष नेता उन्हें नाम से जानते हैं।