देवल संवाददाता, लखनऊ।राजधानी लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में हॉस्पिटल रिवॉल्विंग फंड (एचआरएफ) के माध्यम से मरीजों को सभी दवाएं सस्ती दर पर उपलब्ध कराने के दावे अभी भी हवा हवाई हैं। मरीजों के पर्चे पर डॉक्टर जो भी दवाएं धड़ल्ले से लिख रहे हैं, उनमें इक्का-दुक्का दवाएं ही एचआरएफ के दवा काउंटर पर मिलती हैं। अधिकतर दवाएं लेने के लिए मरीज और तीमारदारों को परिसर के बाहर के मेडिकल स्टोर पर जाना पड़ता है।
केजीएमयू में मरीजों को रिआयती दरों पर दवाएं उपलब्ध कराने के लिए एचआरएफ के तहत 23 मेडिकल स्टोर शुरू किए गए हैं। एचआरएफ के जरिये सीधे कंपनियों से दवाओं की थोक में खरीद की जाती है। इससे दवाओं की कीमत 80 फीसदी तक कम हो जाती है और मरीजों को इसी छूट पर दवाएं उपलब्ध करा दी जाती हैं।
हाल ही में एचआरएफ के तहत एक काउंटर ओपीडी भवन के बाहर भी खोला गया है। मरीजों के अनुसार ओपीडी और इमरजेंसी में लिखी जाने वाली ज्यादातर दवाएं इन स्टोर पर नहीं मिलती हैं। कुछ दवाएं यहां और कुछ बाहर मिलने की वजह से उनको दो बार लाइन में लगना पड़ता है।
निजी मेडिकल स्टोर पर भरमार
एचआरएफ काउंटर खुलने के बाद भी केजीएमयू के बाहर के निजी मेडिकल स्टोरों पर रोज ही भीड़ लगी रहती है। ये भीड़ साफ संकेत देती है कि या तो एचआरएफ काउंटर पर सभी दवाएं उपलब्ध नहीं हैं, या फिर डॉक्टर जानबूझकर ऐसी दवाएं लिखते हैं, जो बाहर की दुकानों में ही मिलें।
समन्वय की भी कमी
केजीएमयू में एचआरएफ और डॉक्टरों के बीच समन्वय की कमी के कारण भी मरीजों की जेब कट रही है। संस्थान के जुड़े कुछ लोगों ने बताया कि यहां डॉक्टरों के पास ये जानकारी नहीं होती कि एचआरएफ के स्टॉक में कौन-कौन सी दवाएं हैं। ऐसे में वो कोई भी दवा लिखते रहते हैं।
दूसरी ओर चिकित्सक एचआरएफ को उन दवाओं की सूची भी नहीं देते, जो वो मरीजों को लिखना पसंद करते हैं। यदि वो दवाओं की सूची उपलब्ध कराएं तो कंपनी से सीधी खरीद कर मरीजों को सस्ते दर में उपलब्ध कराई जा सकेंगी, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।
केस 1
महाराजगंज निवासी गिरजा शंकर सोमवार को केजीएमयू में मेडिसिन विभाग की ओपीडी में दिखाने आए थे। डॉक्टर ने देखने के बाद उनके पर्चे पर नौ दवाएं लिखीं। परिसर में ओपीडी भवन के बाहर बने हॉस्पिटल रिवॉल्विंग फंड (एचआरएफ) से संचालित दवा काउंटर पर उनको मात्र तीन दवाएं ही मिलीं।
केस 2
सिद्धार्थनगर निवासी प्रदीप कुमार ने केजीएमयू में ईएनटी विभाग की ओपीडी में दिखाया था। उनके पर्चे पर सिर्फ दो दवाएं लिखी गईं। इनमें भी एक दवा एचआरएफ वाले दवा काउंटर में उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में उन्होंने दोनों दवाएं बाहर से ही लेने की बात कही।
केस 3
अंबेडकरनगर निवासी हरिश्चंद्र को केजीएमयू के ईएनटी विभाग की ओपीडी में पांच दवाएं लिखी गईं। इनमें से दो दवाएं ही अंदर के दवा काउंटर पर मिल सकीं। उनके मुताबिक पर्चे पर मुहर लगाई गई है कि सभी दवाएं एचआरएफ से 80 फीसदी तक छूट पर मिल जाएंगी, पर जब दवाएं ही नहीं हैं तो फिर छूट कैसी।
केस 4
लखनऊ के खरगापुर निवासी जगदेव को यूरोलॉजी विभाग की ओपीडी में छह दवाएं लिखी गईं। इनमें से केवल तीन दवाएं ही उन एचआएफ के दवा काउंटर से मिल सकीं। अन्य दवाएं उनको महंगी कीमत पर बाहर के मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ीं।
''केजीएमयू के प्रवक्ता प्रो. केके सिंह ने बताया कि केजीएमयू में एचआरएफ को और मजबूत किया जा रहा है। डॉक्टरों से बराबर कहा जा रहा है कि वे एचआरएफ में मौजूद दवाएं ही लिखें। उनसे यह भी अनुरोध किया जा रहा है कि वे अपनी दवाओं की सूची उपलब्ध करा दें। ताकि उनकी खरीद सुनिश्चित हो सके।''