ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने जिन हथियारों-स्कैल्प मिसाइल, हैमर बम और आत्मघाती ड्रोन का जिस तरह सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया, उसने देश की सैन्य शक्ति और संघर्ष को लेकर नीति की एक नई झलक प्रदर्शित की है। यह झलक सैन्य क्षमता में तकनीकी श्रेष्ठता की है।
परंपरागत रूप से बड़े पैमाने पर बम बरसाने अथवा आमने-सामने की भिड़ंत के सामान्य तौर-तरीकों से इतर स्कैल्प, हैमर और कामीकेज ड्रोन (अपने निशाने पर प्रहार के लिए हवा में लंबे समय तक मंडराता एरियल वीपन) के जरिये गुलाम कश्मीर और पाकिस्तान के भीतर आतंकी ठिकानों को जिस तरह सटीकता, न्यूनतम क्षति और दुश्मन की पहुंच से दूर रहकर ध्वस्त किया गया, वह अपने आप में नई-अनोखी बात है।
इनमें से ड्रोन स्वदेशी है, जबकि स्काल्प मिसाइलों और सेल्फ गाइडेड हैमर बम आयात किए गए हैं। स्काल्प मिसाइलें राफेल लड़ाकू विमानों के जरिये दागी गईं।
क्या है स्कैल्प मिसाइल?
स्कैल्प यानी एससीएलपी वास्तव में फ्रांसीसी मिसाइल सिस्टम डे क्रोइसर आटोनम लांग पोर्ट का संक्षिप्त नाम है। इसे फ्रांस और यूके द्वारा साझा रूप से विकसित किया गया है।
यह एक लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल है, जिसे हवा से लांच किया जाता है। इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि पांच सौ किलोमीटर की अपनी अधिकतम सीमा में यह दुश्मन के किसी असेट को पूरी सटीकता से निशाना बना सकती है।
अगर कोई महत्वपूर्ण टारगेट की लोकेशन पूरी तरह स्पष्ट हो तो इससे सौ प्रतिशत नतीजे की उम्मीद की जा सकती है। इन मिसाइलों का इस्तेमाल यूके और फ्रांस सीरिया (2018) और लीबिया (2011) में कर चुके हैं। गुलाम कश्मीर से आगे जाकर पाकिस्तान की जमीन पर टारगेट को हिट करने में इन मिसाइलों की प्रमुख भूमिका रही।
हैमर बम क्या हैं?
इसी तरह हैमर यानी एचएएमएमईआर बम भी सेल्फ गाइडेड बम हैं। फ्रांस के सफरान इलेक्ट्रानिक्स एंड डिफेंस द्वारा विकसित गिए ये बम वास्तव में परंपरागत बम ही हैं, लेकिन फर्क यह है कि ये जीपीसी, आइएनएस जैसे नैविगेशन और इन्फ्रारेड या सेमी एक्टिव लेजर गाइडेंस से लैस हैं। यानी ये उसी जगह को निशाना बनाएंगे जिनके लिए इन्हें दागा गया है।
इनकी सटीकता का स्तर भी सौ प्रतिशत है यानी अगर लक्ष्य पूरी तरह परिभाषित है, लोकेशन सुनिश्चित तो इनके चूकने का सवाल ही नहीं है। इनकी रेंज 15-70 किलोमीटर हैं। इन्हें भी राफेल विमान से लांच किया गया। अफगानिस्तान, मालदीव और पश्चिम एशिया के सैन्य आपरेशनों में फ्रांस ने अपने एयर आपरेशन में इस्तेमाल किया है।
रक्षा सूत्रों के अनुसार, हैमर बम का इस्तेमाल मध्यम दूरी के लक्ष्यों को तबाह करने के लिए किया गया। ये ऐसे टारगेट थे, जिनमें आसपास क्षति होने की आशंका काफी थी, लेकिन भारतीय वायुसेना ने यह सुनिश्चित किया कि सटीक हमले में केवल उन्हीं ठिकानों को ध्वस्त किया जाए जो निशाने पर हैं। ऑपरेशन सिंदूर के तहत गुलाम कश्मीर में हुई सैन्य कार्रवाई में ये बम इस्तेमाल किए गए हैं।
यह है खास तरह का ड्रोन
भारत ने जो तीसरा हथियार इस्तेमाल किया, वह लोइटरिंग म्युनिशन के रूप में एक ऐसा ड्रोन है जो किसी लक्ष्य के रूप में तब तक हवा में टंगा रहता है या चक्कर लगाता रहता है, जब तक उसे हमला करने के लिए सही मौका न मिले।
खास बात यह है कि यह एक तरह का आत्मघाती ड्रोन होता है जो हमला करने के साथ ही खुद भी समाप्त हो जाता है। इसे या तो बाहर से कंट्रोल किया जाता है या यह खुद ही लक्ष्य का चयन करने में सक्षम होता है। आपरेशन सिंदूर में इसे बाहर से नियंत्रित किया गया। भारत ने यह ड्रोन इजरायल से खरीदा था, लेकिन बाद में उसने इसका भारतीय वैरिएंट खुद ही बना लिया।