देवल संवाददाता, लखनऊ।पीएम मोदी व सीएम योगी ने जल जीवन मिशन योजना के तहत हर घर नल परियोजना से बुंदेलखंड की दशा-दिशा बदल दी। यह दावा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग का अध्ययन कर रहा है। राज्य जल व स्वच्छता मिशन कार्यालय के आग्रह पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय ने सभी सातों जनपदों के 10-10 गांवों में जाकर सर्वे किया। एक तरफ विश्वविद्यालय ने जहां स्वास्थ्य, शिक्षाआर्थिक मानकों व सामाजिक दृष्टिकोण में आए सकारात्मक पहलुओं को उजागर किया तो वहीं कई विभाग को कई सुझाव भी दिए। अध्ययनमहिलाओं, युवाओं, आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, विद्यार्थियों आदि से बातचीत के आधार पर किया गया। अध्ययन के जरिए बुंदेलखंड के लोगों के जीवन में आए बदलाव को रेखांकित किया गया।
बुंदेलखंड के सातों जनपदों के 10-10 गांवों में हुआ सर्वे
बांदाः नारायणपुर, मझिवा सानी, जखनी, गोरेमऊ कलां, डाडामऊ, नरी, सहूरपुर,गरौली शुक्ल, थरथुआ व बड़ांखर खुर्द
चित्रकूटः देउंधा,चहटा, नोनमई, बुधवल, बरहट, रामटेकवा, बसावनपुर, मानिकपुर, सरहट व हनुवा
हमीरपुरः हरौलीपुर, पचखुरा, बिलौटा, रिऊआ, हसऊपुर सैंसा, धरकपुर, जरिया टीला, करगवा, टिकुर व अतरा
झांसीः गुवावली, बैजपुर, सिया, सुल्तानपुरा, पुरवा, घाटकोटरा, पारीक्षा, तिलैथा, गैरहा व चिरकना
जालौनः हथेरी, चमारी, रायपुरा, रवा, रूरा सिरसा, सला (जम्होरी खुर्द), झगुई खुर्द, मषई एट (घमसेनी), जौसारी खुर्द व गिरथान
महोबाः बरी, बघवा खेड़ा, गड़हरी, रिहुनिया, इमली खेड़ा, बमनेथा, काशीपुरा, लिलवा, धनावन व कुरौरा डांग
ललितपुरः रामपुर, बदनपुर, पिपरट, बम्हौरी, कचनौदा, गुगखारा, कल्याणपुरा, गदयाना, इक्कलगुवा व थनरावा
विश्वविद्यालय ने योजना लागू होने के बाद आए बदलावों का किया जिक्र
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग ने जल जीवन मिशन योजना के लागू होने के बाद आमजन के जीवन में आए बदलावों का जिक्र किया। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य सुधार, शिक्षा पर प्रभाव,आर्थिक व सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक सामंजस्य व दृष्टिकोण, रोजगार समेत पांच पहलुओं को लेकर की गई है।
स्वास्थ्य सुधार
रिपोर्ट के मुताबिक गांव के प्रत्येक परिवारों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध हो रहा है,जिससे लोगों के स्वास्थ्य में सुधार आया है। जल जनित बीमारियों से छुटकारा और पाचन क्रिया में सुधार हुआ। पेट संबंधी समस्याएं भी कम हुई हैं। स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता से मानसिक सुकून मिला, जिससे कार्य क्षमता में वृद्धि हुई। मातृ मुत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है। गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य में सुधार हआ। दूर से जल लाने के कारण होने वाले गर्दन व कमर दर्द से निजात मिला। दूषित जल के कारण हड्डियां कमजोर होती थीं, जिसमें कमी आई है। इलाज पर होने वाले खर्च से पैसे में काफी बचत।
शिक्षा पर प्रभाव
योजना से विद्यालयों को पूर्णतः संतप्त कर दिया गया है। स्कूलों में बच्चों (खासतौर पर बालिकाओं) का नामांकन बढ़ा है। ड्राप आउट कम हुआ। योजना के कारण स्वच्छता में भी सुधार आया। विद्यालय में रखी टंकी में अब जल संग्रह होता है, इसका काफी सदुपयोग भी होता है। शौचालय की भी समुचित व्यवस्था की गई है। इससे बालिकाओं में नामांकन दर में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
आर्थिक व सामाजिक परिवर्तन
शुद्ध पेयजल की उपलब्धता से सामाजिक भेदभाव में कमी और रहन-सहन के स्तर में बदलाव आया है। महिलाएं कृषि, पशुपालन व अन्य उत्पादक गतिविधियों में अधिक सक्रिय होकर भाग ले रही हैं। शौचालय बने और जल की उपलब्धता से महिलाओं के सम्मान-सुरक्षा में वृद्धि। महिलाओं के रोजगार का भी सृजन। 95 फीसदी लोगों के चिकित्सा खर्च में बचत।
सामाजिक सामंजस्य व दृष्टिकोण
पानी की पहुंच से जातिगत भेदभाव समाप्त। सामुदायिक संबंध मजबूत हुए। सहयोगात्मक व्यवहार में वृद्धि हुई। जल संकट के समाधान से सामाजिक तनाव में कमी अंकित की गई है। महिलाओं का आत्मबल मजबूत हुआ। ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था में सुदृढ़ता आई है। बाल-विवाह में कमी। दहेज प्रथा में 93 फीसदी कमी।
रोजगार
जीविकोपार्जन के लिए पलायन कर रहे व्यक्तियों ने बताया कि अब गांव में ही स्वरोजगार से लाभान्वित हो रहे हैं। कृषि के लिए उपलब्ध जमीन उपजाऊ है, जिससे फसलों का उत्पादन किया जा रहा है। मनरेगा में युवाओं द्वारा काम की मांग भी बढ़ी है। युवाओं का पलायन रुका। रोजगार परक,कृषि व पशुपालन कार्यों में भागीदारी बढ़ी। मुर्गी-मछली पालन, डेयरी, मोबाइल व किराना की दुकान आदि रोजगारपरक कार्यों के प्रति युवा आकर्षित होकर कार्य कर रहे हैं। जल की उपलब्धता से पशुपालन के अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं। स्वरोजगार के कारण 92 फीसदी युवाओं ने गांव में रहने को प्राथमिकता दी।
विश्वविद्यालय ने दिए सुझाव
पेयजल के उपभोग के प्रति अपव्यय रोकने के लिए जागरूकता पर जोर। स्वच्छ पेयजल की उपयोगिता व उपादेयता के प्रति जागरूक करना। सामाजिक कार्यकर्ताओं व एनजीओ के साथ मिलकर समाज को जल संरक्षण तकनीकी के बारे में शिक्षित करना। पंचायत सदस्यों व फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की भूमिका को बढ़ावा देना। घऱ के नल के पानी के उपयोग के लाभों को समझाने व दैनिक उपभोग के लिए अपनाने के लिए प्रेरित करना। जल सहेलियों का सहयोग लेने से पहले उन्हें प्रशिक्षित करना। स्वच्छ पेयजल के सदुपयोग पर विशेष जोर। जलापूर्ति को लेकर विद्यालयों के चौकीदारों को भी जागरूक करना।
ढाई महीने में बुंदेलखंड के सात जनपदों के 70 गांव में टीम ने अध्ययन किया गया। टीम में शोधार्थी और 4 फैकल्टी मेम्बर शामिल रहे। हमने यह पाया कि हर घर जल की वजह से आमजन के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है। हर परिवार के पास पानी पहुंच गया है। पीने के पानी के कारण लोगों का स्वास्थ्य काफी अच्छा रहा है। इसके साथ ही यह भी महसूस किया गया कि पानी के संरक्षण पर भी जागरूकता की आवश्यकता है। -डॉ. यतीन्द्र मिश्र, असोसिएट प्रोफेसर, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी