दैनिक देवल, ओबरा सोनभद्र। जनपद में खनन प्रमुख उद्योग के रूप में स्थापित रहा है। इससे न सिर्फ राजस्व की आपूर्ति होती है बल्कि रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होते हैं जिनकी जनपद के विकास में अहम भूमिका रही है। हालांकि खनन उद्योग को संचालित करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए कुछ नियम भी है ताकि प्रकृति का दोहन न हो। इसी क्रम में तीन माह पूर्व जारी एनजीटी के आदेश के क्रम में जनपद के 22 पत्थर खदानों में खनन कार्य बंद कर दिया गया था। जारी आदेश में ऐसे खदान जिन्होंने पर्यावरण प्रमाण पत्र समय से नहीं लिया वह खनन कार्य नहीं कर सकेंगे। एनजीटी के सख्त निर्देश के अनुपालन में 22 खदानों में खनन कार्य प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया है। पूर्व में जनपद स्तर पर पर्यावरण प्रमाण पत्र जारी होता था जिसे एनजीटी कोर्ट में चैलेंज किया गया था। कोर्ट ने 7 नवंबर तक सभी खदान संचालकों से राज्य स्तर से पर्यावरणीय अनुमति लेने का निर्देश दिया था। समय से जिसका प्रमाण पत्र जारी नहीं हुआ उसे खनन कार्य बंद करना पड़ा। हालांकि इसकी जद में कल 24 पत्थर खदान संचालक थे, जिसमें से दो ने समय से पूर्व अपना राज्य स्तरीय प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया शेष अन्य प्रक्रिया में शामिल है और जब तक प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक खनन कार्य बंद रहेंगे।
जनपद में अवैध खनन को लेकर लगातार शिकायतें मिलती रही हैं जिससे न सिर्फ राजस्व को भारी नुकसान पहुंचता है बल्कि पर्यावरण को भी काफी नुकसान होता है जो की अपूरणीय क्षति है। एनजीटी के इस सख्त आदेश के बाद खनन उद्योग को नियमों के दायरे में रहने की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि एनजीटी के पर्यावरण प्रमाण पत्र के बगैर जनपद के 22 खदानों में खनन कार्य बंद करने के इस निर्देश के बाद क्रेशर संगठन में काफी नाराजगी देखी गई। उनका कहना है कि खनन को नियंत्रित करने वाले नियमों व कागजी खानापूर्ति की कमी की वजह से खदानों को बंद कर देने से काफी नुकसान उठाना पड़ता है।