महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने बीएचयू की स्थापना के तीन साल बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए 1919 में बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज की शुरुआत कराई। आगे चलकर इसका नाम आईटी बीएचयू हो गया। 2012 में इसे आईआईटी का दर्जा मिला।आईआईटी बीएचयू परिसर में दीवार बनाए जाने के प्रशासनिक फैसले को अमल में लाना चुनौती से कम नहीं है। 2012 में आईटी बीएचयू को आईआईटी का दर्जा मिलने के दौरान जो एक्ट बना गया था, उसमें ये प्रस्ताव भी शामिल था कि आईआईटी बीएचयू विश्वविद्यालय से अलग नहीं होगा। करीब पांच साल पहले भी आईआईटी बीएचयू परिसर में बाउंड्रीवॉल बनाए जाने की पहल हुई थी लेकिन इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका था।महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने बीएचयू की स्थापना के तीन साल बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए 1919 में बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज की शुरुआत कराई। आगे चलकर इसका नाम आईटी बीएचयू हो गया। 2012 में इसे आईआईटी का दर्जा मिला। इसके लिए एक अमेंडमेंट एक्ट भी पारित किया गया था जिसमें देश भर के अन्य आईआईटी के साथ ही आईआईटी बीएचयू को लेकर भी कई अहम फैसले किए गए थे। इस एक्ट के बाद आईटी से आईआईटी बीएचयू बन गया।दीवार बनाने के फैसले को अमली जामा बनवाने के लिए एक्ट में भी संशोधन की जरूरत पड़ सकती है।-बीएचयू के छात्रों के साथ ही शिक्षकों की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है।-परिसर में दीवार बनवाने के फैसले को लेकर राजनीतिक दबाव भी झेलना पड़ सकता है।आईटी से आईआईटी बीएचयू बनाए जाने के दौरान दोनों संस्थानों के बीच एक आपसी समझौता भी हुआ था। जिस पर उस समय के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपनी सहमति जताई थी। इसमें सुरक्षा, जल, विद्युत के साथ ही स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की केंद्रीयकृत व्यवस्था रखने का निर्णय हुआ था। ऐसा ही चल भी रहा था। इधर कुछ सालों से धीरे धीरे आईआईटी प्रशासन ने एक-एक कर व्यवस्थाओ से खुद को अलग रखने की पहल की। प्रमुख मुद्दा सुरक्षा की अगर बात करें तो पहले आईआईटी में ज्वाइंट चीफ प्रॉक्टर होते थे और बीएचयू चीफ प्रॉक्टर की देखरेख वाली टीम यहां सुरक्षा व्यवस्था की कमान संभालती थी। अब एक साल से आईआईटी में भी खुद चीफ प्रॉक्टर की तैनाती होने लगी। अभी भी जल, विद्युत के साथ ही स्वास्थ्य की सुविधाओं का लाभ आईआईटी छात्र-छात्रा, शिक्षकों को सर सुंदरलाल अस्पताल में बिल्कुल उसी तरह मिलती है, जैसे बीएचयू के शिक्षक, कर्मचारी, छात्र को मिलती है।