पश्चिमी देशों खास तौर पर अमेरिका और यूरोपीय संघ की तरफ से रूस से तेल खरीदने के मामले में भारत को लगातार उपदेश दिया जा रहा है और आर्थिक दंड लगाने की धमकी भी दी जा रही है लेकिन हकीकत यह है कि ये देश अभी भी रूस से लगातार अपनी जरूरत की चीजें खूब खरीद रहे हैं।
ताजे आंकड़े बताते हैं कि जुलाई, 2025 में रूस के पाइपलाइन से यूरोपीय देशों की गैस आपूर्ति में 37 फीसद की वृद्धि हुई है। यूरोपीय देशों का दावा कि उन्होंने रूस से कम ऊर्जा उत्पादों की खरीद की है, असलियत में पूरी तरह से गलत है। क्योंकि आंकड़ों में जो कमी दिख रही है वह इसलिए दिख रही है कि यूरोपीय देशों के ऊर्जा आयातकों को रूस को भुगतान करने में दिक्कत आ रही है।
क्यों भारत सरकार प्रतिबंधों पर गंभीर नहीं?
भारत सरकार के पास अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊर्जा की खरीद-बिक्री को लेकर उक्त सारे आंकड़े हैं यहीं वजह है कि विदेश मंत्रालय यूरोपीय संघ की तरफ से रूस से ऊर्जा खरीद पर नये प्रतिबंध लगाने की धमकी को बहुत गंभीरता से नहीं ले रहा है।
ऊर्जा क्षेत्र के जानकार मानते हैं कि इस तरह का प्रतिबंध वैश्विक ऊर्जा बाजार को और ज्यादा अस्थिर करेगा जिसका ज्यादा खामियाजा पश्चिमी देशों पर होगा।
कूटनीतिक सूत्रों ने हाल ही में क्रिया (सीआरईए-सेंटर फॉर रिसर्च ऑन इनर्जी एंड क्लीन एयर) की उस रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि, “जब से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है तब से यूरोपीय संघ ने रूस को ऊर्जा खरीद के बदले कुल 105.6 अरब डॉलर का भुगतान किया है जो रूस के कुल सैन्य बजट का 76 फीसद है।
रूसी इम्पोर्ट में बेतहाशा बढ़ोतरी
रूस का एलएनजी अभी तक यूरोपीय संघ के हर देश में इस्तेमाल हो रहा है। रूस का 87 फीसद एलएनजी स्पेन, बेल्जियम और फ्रांस को गया है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पूरा एलएनजी सिर्फ इन्हीं तीन देशों में इस्तेमाल किया गया।
फ्रांस के एलएनजी आयात में 47 फीसद तो नीदरलैंड ने रूसी एलएनजी के आयात में 81 फीसद वृद्धि की है। अगर वर्ष 2025 की बात करें दो यूरोपीय देशों ने रूस को एलएनजी के बदले 8.5 अरब डॉलर का भुगतान किया है।” यह बताता है कि रूस से आयातित ऊर्जा उत्पादों का विकल्प खोजने में यूरोपीय देश असफल रहे हैं। असलियत में दुनिया में कहीं से भी रूसी एलएनजी का विकल्प यूरोपीय देशों के पास नहीं है।
ट्रंप के बयानों पर भारत का रुख
भारत सरकार ने दो दिन पहले रूस से तेल व गैस की खरीद पर अमेरिकी राष्ट्रपति के बयानों को अन्यायपूर्ण व असंगत करार दिया है। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप को सही स्थिति के बारे में पता नहीं है।
तभी मंगलवार को जब उनसे यह पूछा गया कि क्या अमेरिका अभी भी इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आवश्यक धातु और परमाणु कार्यक्रम केलिए यूरेनियम की खरीद कर रहा है तो उनका जवाब था कि इस बात का उनको पता नहीं है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में अमेरिका को याद दिलाया था कि वह अपने परमाणु उद्योग के लिए यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, ईवी उद्योग के लिए पैलेडियम और साथ ही फर्टिलाइजर्स की खरीद कर रहा है।